पृष्ठ:भारत की एकता का निर्माण.pdf/६३

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भारत की एकता का निर्माण साथ साथ इन्हीं चार महीनों में पाकिस्तान और हिन्दुस्तान के बीच में सारी पुरानी मिल्कियत का भी हमने हिस्सा बाँट कर लिया। अब एक कुटुम्ब में भी यदि मिल्कियत का हिस्सा करना हो, तो दो भाइयों के बीच भी वह काम एक दिन में नहीं हो जाता और उसका हिसाब-किताब करना पड़ता है, उसकी जायदाद का माप निकालना पड़ता है। कभी पंच भी करना पड़ता है। कभी झगड़ा भी होता है। यह सब निपटाने में वख्त लगता है। तो हिन्दुस्तान की मिल्कियत का, जमीन जायदाद का, जितनी हमारी दौलत थी, जितना हमारा कर्जा था, जितनी लोगों की सेक्यूरिटीज़ थीं, सब का हिसाब करना था। इन सब चीज़ों का हमने फैसला किया और आपस में बाँट लिया। इस सब कार्य में हमने किसी पंच को नहीं बुलाया । पिछले चार महीनों में हमने न केवल यह सब ही किया, बल्कि इसके साथ-साथ लाखों आदमी पंजाब में एक तरफ से दूसरी तरफ गए और दूसरी तरफ से इस तरफ ले आए गए। अभी तक यह काम पूरा नहीं हो पाया, लेकिन करीब-करीब पूरा कर लिया है । समय आया है कि इस काम में कितनी-कितनी मुसीबतें आई हैं, उनका बयान में आपके सामने करूँ। अगर मैं सब बातें विस्तार से बताऊँ तो आपकी आँखों में आँसू आ जाएंगे। एक लम्बा-सा, साठ साठ मील का लम्बा, पैदल चलता जलूस एक तरफ से दूसरी तरफ के लिए चला, तो दूसरा उस तरफ से इस तरफ के लिए। दस-दस लाख आदमी एक साथ, जिनमें लाखों बच्चे और औरतें थीं, एक तरफ से दूसरी तरफ गए या आए। जो मर गए, सो मर गए। जो जिन्दा थे, वे गाड़ी, बैल, भैस सभी कुछ लेकर चलते चलते निकले। रास्ते में किस तरफ से मार पड़ेगी, इसका कोई ख्याल नहीं था। साथ में थोड़ी-सी पुलिस या थोड़ी- सी फौज ही होती थी। ऊपर से मूसलधार पानी पड़ता है, नीचे भी पानी- ही-पानी भरा है। बच्चों और औरतों तक के पास का कपड़ा नहीं है, खाने का इन्तजाम नहीं है, लकड़ी तक नहीं है । दो-दो महीनों तक इस तरह से लोग चलते ही रहे । तभी लोगों में कालरा की बीमारी हुई और सैकड़ों हजारों लोग मरने लगे। इसी हालत में अमृतसर शहर के बीच में से मुसलमानों का जुलूस उधर जाने को हुआ। अमृतसर शहर हिन्दुओं और सिक्खों से भरा हुआ था। सिक्खों ने इन्कार किया कि इधर से यह मुसलमान लोग नहीं जा सकते । वह ६०