पृष्ठ:भारत की एकता का निर्माण.pdf/६६

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बम्बई, चौपाटी ५६ बार कहता हूँ कि यह गलत बात है । मैं तो कहता हूँ कि यदि हम उन्हें यहाँ न लाएं, तो वे मारे जाएंगे और उसकी जिम्मेवारी हमी पर पड़ेगी। लेकिन हमारे लोग भी नहीं मानते थे। अब वे सब भागे-भागे आते हैं। आज हमारे पास जितने जहाज है, सिन्धिया के भी जितने जहाज हैं, वह सब हमने वहाँ भेजे हैं । अब किस तरह से लोगों को वहां से निकलना है, उनका बयान आज मैं नहीं करूँगा, क्योंकि मैं जहर फैलाना नहीं चाहता। लेकिन हालत बहुत बुरी है । ये सिक्ख, जिन्होंने मुसलमानों को इस तरह से यहाँ से जाने दिया, इन्हीं सिक्खों के गुरुद्वारे में उनका ऐसा हाल हुआ! इतना होते हुए भी सिक्खों ने खामोशी रखी। सिक्ख मेरे पास आए तो मैंने कहा कि सौ-डेढ़-सौ सिक्ख मारे गए हैं। लेकिन उससे आपकी इज्जत बहुत बढ़ी है। आप बैठे रहिए, गुस्सा नहीं कीजिए । वे बैठ गए। उसके बाद गुजरात से ट्रेन आती थी, जिसमें बन्नू से हमारे सिक्ख और हिन्दू भाई आ रहे थे। इस ट्रेन में करीब-करीब तीन हजार आदमी थे । दस बजे उलटे रास्ते ट्रेन ले जाकर रोक ली गई । वहाँ हमारा मिलिट्री का पहरा था। मिलिट्री के करीब ६० आदमी थे। कोई ६-८ घंटों तक लगातार गोली चलती रही। ट्रेन में हमारे जो तीन हजार आदमी थे, अब उनमें से करीब-करीब एक हजार का हिसाब मिलता है , २,००० हजार आदमियों का पता ही नहीं चलता। बस और जो कुछ हुआ, उसका बयान करने का यह मौका नहीं है। लेकिन इतना मैं जरूर कहना चाहता हूँ कि यह सब होते हुए भी, सिक्खों ने उस सब को बर्दाश्त कर लिया और सब जगह पर, दिल्ली में भी, सिक्ख जब आज मिलते हैं, तो हम से कहते हैं और गान्धी जी को विश्वास दिलाते हैं कि हम खामोशी रखेंगे। इन सिक्खों को लोग जब बदनाम करते हैं, तब मुझको चोट लगती है कि यह क्या बात है । लोग क्यों ऐसा करते हैं? मैं आप से जो कह रहा था, इन्हीं हालात में चार महीने में हमने ये सब काम कर लिए। सारा हिस्सा बाँटकर लिया , न कोर्ट में जाना पड़ा, न किसी और जगह पर जाना पड़ा। साथ-साथ हमारी किस्मत में जूनागढ़ की समस्या भी आई । उसे जिस तरह से हमने ठीक किया, दुनियावाले लोग उसे देखते रहे। वे जानते हैं कि हम लोगों पर जो बोझ पड़ा है, वह बोझ अगर दूसरी गवर्नमेंट पर पड़ा होता तो उसकी कमर टूट जाती। इससे हमारी इज्जत काफी बढ़ी है। मैं दावा करता हूँ कि चार महीने में यह जितना