पृष्ठ:भारत की एकता का निर्माण.pdf/६७

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६० भारत की एकता का निर्माण काम हुआ है, उसे पूरा करना भी बहुत कठिन काम था। हमने उसे किस तरह से किया, यह आप जानते हैं। अभी भी हमारा कुछ काम बाकी है। अभी हमारे ८ लाख सिन्धी भाइयों को इधर ले आना है। वह आ रहे हैं, तो लानेलाने में ही काफी समय लगेगा। क्योंकि हमारे पास इतने बोट भी नहीं हैं। एक छोटी सी रेलवे जोधपुर की तरफ जाती है। उसमें भी एक छोटी रेलवे है, उसमें दो सौ ढाई सौ आदमी आते हैं। रास्ते में जोखम भी है। बहुत मुश्किल काम है। सिन्धी लोग, जो दुनिया भर में व्यापार करते थे और लाखों, करोड़ों रुपयों का व्यापार करते थे। वे धनी लोग थे, बे सुखी लोग थे। लेकिन आज उनके पास कोई चीज बाकी नहीं है। सब खाली हो गया है। यों तो जो इन्सान पैदा होता है, वह एक दिन जरूर मरेगा। लेकिन इस तरह जो उसका मान भंग होता है, वह बहुत बुरा है। न इधर के हैं, न उधर के हैं । उधर अब कोई उनकी परवा नहीं करता, और वे दुःखों के बोझ से दब गए हैं। अब अगर इधर भी हम उनको अपना न समझे; यह न समझे कि उनके ऊपर जो यह आपत्ति आई है, यह तो असल में सारे हिन्दुस्तान पर विपत्ति है, इस समय हम उनकी मदद न करें, तो वह कितना बुरा होगा! हमें इस चीज को ठीक करना है । तो यह आप लोगों का काम है। आपका बम्बई शहर कितना बड़ा है । इस बम्बई शहर के हर एक घर में दो-दो सिन्धी रख लो । आठ लाख में से सब-के-सब सिन्धी तो इधर आनेवाले है नहीं। जितने सिन्धी आनेवाले हैं, उन में तीन-चार लाख तो तीस या चालीस लाख की आबादीवाले इस बम्बई में खप ही सकते हैं। अगर हम अपने दुखी आदमियों को भी हजम नहीं करेंगे, तो हम स्वराज्य कैसे हजम करेंगे ? तो मैं आप से यह कहना चाहता हूँ कि हमारा और आपका काम है कि हमारे जो सिन्धी दुखी भाई यहाँ आए हैं, हम उनकी तलाश करें। हम पता चलाएँ कि कौन आया है, कहाँ आया है। एक-एक को अपने पास रख लो और उसको संभाल लो। और ये ऐसे लोग नहीं हैं कि कोई भिक्षुक हों, या भिक्षुक बनना चाहते हों । पहला मौका मिलते ही वे अपना कार्य ठीक कर लेंगे, क्योंकि वे बहादुर लोग हैं, वे कुशल लोग हैं। हाँ, अभी उनमें गुस्सा भरा हुआ है, उनका दिमाग इस वख्त बिगड़ा हुआ है । उनकी जगह पर हम और आप में से भी कोई होता, तो उसका दिमाग भी बिगड़ जाता। तो हमें