पृष्ठ:भारत की एकता का निर्माण.pdf/६८

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4- बम्बई, चौपाटी उनको सँभालना है । इस मौके पर उनके साथ सहानुभूति न बताओ, तो मुश्किल हो जाएगा। तो आपके पास मेरी नम्र विनती यह है कि आप समझ लें कि यह हमारा धर्म है। और यह फर्ज यदि म अदा नहीं करेंगे, तो हम पर मुसीबत आनेवाली है। अब यह तो मैंने आज थोड़ा-सा चित्र आपको दिया कि हमने अब तक क्या किया है । लेकिन अपनी कहानी सुनाने के लिए मैं नहीं आया। हमारी उम्मीद क्या है, हमें करना क्या चाहिए, वह सुनाने के लिए मैं आया हूँ। इसमें मुझे बहुत निराशा होती है, क्योंकि हमारे कई नौजवान भाई समझते हैं कि उन्हें अपनी लीडरशिप सिद्ध करने या अपनी नेतागीरी प्रसिद्ध करने का मौका मिला है । यह देखकर मुझे बड़ा दुख होता । सारे हिन्दुस्तान का भविष्य तो आपके पास पड़ा है, आपको सिद्ध किसके पास करने की जरूरत है ? मैं पहले अनाज का मसला लेता हूँ। जब हमने अनाज के बारे में, फूड कंट्रोल ( अन्न नियंत्रण) के बारे में, एक पोलिसी (नीति) तय की, तो यह कोई आसान मामला तो था नहीं। उसमें बहुत मतभेद था। हमारे आपस में भी बहुत मतभेद था। लेकिन आखिर तीन-चार साल से कंट्रोल चलता है और चारों तरफ से शिकायत आती है तो उसका किसी-न-किसी तरह से फैसला तो करना ही है। गान्धी जी ने बहुत जोर दिया कि कंट्रोल निकाल देना चाहिए। कई और लोगों की भी यही राय थी और देहातों में तो सब लोग यही कहते थे । हमने बार बार प्रान्तीय सरकारों में मिनिस्टरों को बुलाया, उनकी कांफ्रेंसें की। आखिर हमने एक कमेटी बनाई, जिसमें बड़े-बड़े समझदार लोग थे। सर पुरुषोत्तम दास को इस कमेटी का चेयरमैन (अध्यक्ष) बनाया और इस कमेटी से कहा कि भाई इस चीज को तलाश करके हमें सलाह दो कि हमें क्या करना चाहिए। उसमें हमारे सोशलिस्ट भाई राममनोहर लोहिया को भी रख लिया, क्योंकि हम सब की राय लेना चाहते थे। अब इस कमेटी ने फैसला किया कि कंट्रोल को हटा देना चाहिए। उस फैसले पर जब अमल करने का वख्त आया, तब फिर हमने प्रान्तों के मिनिस्टरों को बुलाया। फिर उनकी राय ली। सब लोगों की राय थी कि अब इसे हटाना ही चाहिए। हमारी आल इंडिया कांग्रेस कमेटी ने भी यही फैसला दिया कि हां, हटाओ। अब हम लाचार हो गए, क्योंकि चन्द जिम्मेबार लोग उसके खिलाफ