पृष्ठ:भारत की एकता का निर्माण.pdf/६९

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भारत की एकता का निर्माण थे। हमारे सब आफीसर उसके खिलाफ थे। लेकिन हमने यह फैसला कर लिया । फैसला करके इधर से चले गए और हम सोचते रहे कि अब क्या करेंगे। हमारे सोशिलिस्ट भाइयों ने प्रस्ताव किया कि यह बहुत गलत काम किया गया है, बहुत बुरा किया गया है। जो सोशिलिस्ट कांग्रेस में हैं, उनका प्रतिनिधि तो हमने ले लिया था और हमारे फूड मिनिस्टर डा. राजेन्द्र प्रसाद ने जयप्रकाश नारायण से भी कहा था कि अपना एक आदमी भेजें या खुद ही आ जाएँ। तो उन्होंने कहा था कि हमें फुर्सत नहीं है। हम अपना प्रतिनिधि भेज देंगे, और उन्होंने ही राममनोहर लोहिया को भेज दिया था। इस सब के बाद इन लोगों ने इस प्रकार किया। दूसरी कान्फ्रेंस डाक्टर श्यामाप्रसाद मुकर्जी ने बुलाई। हमारे यहाँ कपड़ा भी कम पैदा होता है, उसको किस तरह से बढ़ाया जाए और उसके कंट्रोल के बारे में क्या किया जाए और किस तरह किया जाए, यह इस कांफ्रेंस को सोचना था । उसमें मजदूरों के प्रतिनिधि को भी बुलाया और जो उद्योग के प्रतिनिधि थे उनको भी बुलाया । सबको बुलाकर एक जल्सा किया गया । इसमें लेबर के प्रतिनिधि, कम्यूनिस्ट, सोशलिस्ट सभी थे । वहाँ हमारे प्राइम मिनिस्टरपं० नेहरू ने इन लोगों को सब कुछ समझाया और सबने उनकी राय मान ली। सब ने एक राय से फैसला किया कि हाँ, ठीक है। अब तीन साल तक कोई हड़ताल नहीं करनी चाहिए । मैं चिल्ला-चिल्लाकर बहुत दिनों से कह रहा था कि पांच साल तक जमकर काम करो। सब झगड़ा छोड़ दो। नहीं तो, हमारा हमारे हिन्दोस्तान का कुछ भी भविष्य नहीं है। तो हमें इधर शान्ति चाहिए । इसलिए जमकर हम कुछ काम करें, तब तो काम होगा । जब फैसला किया, तो उसमें सब शरीक थे। लेकिन जब फैसला करके इधर आए, तो दूसरे या तीसरे ही दिन सोशलिस्ट पार्टी ने रेज्योलूशन (प्रस्ताव) पास किया कि गवर्नमेंट आफ इंडिया ने ट्र स ( सन्धि) का जो फैसला किया है, उसको हम पूरा नहीं मान सकते हैं । एक रोज के लिए तो हमें बम्बई में हड़ताल करनी ही है । मैं पूछता हूँ कि एक दिन के लिए टोकन स्ट्राइक क्यों? क्या लीडरशिप सिद्ध करने के लिए? उसे भी तो सिद्ध करना है । अरे भाई, इतना ही झगड़ा था, तो हमसे कहना था । हम ही लिख देते कि लीडरशिप आपकी है। लेकिन यह भी कोई तरीका है ! अब कांग्रेस में भी तो आप हैं। आपका प्रतिनिधि वहाँ