पृष्ठ:भारत की एकता का निर्माण.pdf/७८

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बम्बई, चौपाटी ६६ लड़ाई चलती थी तो एक घंटे की स्ट्राइक भी किसी कारखाने में नहीं हो सकती थी। और यह सब लोग जो आज स्ट्राइक की बात करते हैं, उन दिनों नहीं कर सकते थे। लड़ाई के दिनों में हमारे कम्यूनिस्ट भाई कहते थे कि "ज्यादा पैदा करो और स्ट्राइक न करो!" आज कहते हैं कि "बैठ जाओ और कम पैदा करो!" क्योंकि आज कोई पकड़नेवाला नहीं है। क्योंकि आज कोई लाठी नहीं चलाता। वह लड़ाई पीपुल्स वार ( जनता का युद्ध ) हो गई थी। अब क्या हुआ 'पीपुल्स' का ? भूखे रहो, खाओ नहीं, पैदा मत करो और बस मौज करो ! ऐसा ही हुआ तो देश क्या होगा? क्योंकि इस चीज़ में आर्मी नहीं बन सकती। फौज अच्छी बनानी हो, तो हमें कितनी चीजें चाहिएँ? एक तो आर्स-एम्यू- निशन ( हथियार-बारूद ) चाहिए । उसके लिए फैक्टरी चाहिए । वह फैक्टरी रात-दिन चलनी चाहिएं। वह २४ घंटा चले। फौज के लिए राइ- फलें चाहिएँ। भर्ती करूँ, तो कहाँ से करूं? बन्दुक देनी हो तो कहाँ से लाऊँ ? मैं जाऊँ सोशलिस्ट के पास कि दो भाई? इस तरह काम नहीं बनेगा। यदि हमारी फैक्टरी हैं, तो कितनी कहाँ हैं, उनमें कितने काम करनेवाले हैं और उस फैक्टरी में से हम कितनी पैदावार कर सकते हैं, कितनी पैदावार बढ़ा सकते हैं, यह सब हिसाब हमारे पास है, उनके पास तो है नहीं । वह तो जानता भी नहीं है कि यह सब क्या है ? सिर्फ बन्दूकें ही नहीं चाहिएँ, तो चाहिएँ, मशीनगर्ने चाहिएँ, उनके लिए बारूद-गोला चाहिए, बम चाहिए, हवाई जहाज चाहिए, बम फेंकनेवाली मशीनें चाहिएँ। उनके लिए ट्रेण्ड आदमी चाहिएँ । लेकिन मैंने कोई जगह नहीं देखी, जहाँ स्ट्राइक नहीं होती है। सब जगह पर होती है। साथ ही हमें पेट्रोल चाहिए, यह सब कहाँ से लाओगे? हमारा पेट्रोल परदेसियों की मेहरबानी पर है। कल हमारा पेट्रोल वह बन्द कर दें, तो हमारी लड़ाई खत्म । पेट्रोल के बिना कुछ नहीं चल सकता। क्योंकि आज की लड़ाई ऐसी लड़ाई नहीं, जैसी पहले थी । पेट्रोल चाहिए, उसके साथ हजारों ट्रक चाहिए और ट्रक्स भी ऐसे चाहिए जो बराबर तैयार मिलें । जीप्स चाहिएँ कि विना सड़क के भी चली जाएँ; पहाड़ के ऊपर जा सकनेवाली मोटरें चाहिएँ। अब ये सब चीजें कहाँ से लाओगे ? कहां बनती हैं इधर? और इधर हमें नए कारखाने खोलने होंगे, तो किस तरह खोलेंगे? स्ट्राइक होगी और