पृष्ठ:भारत की एकता का निर्माण.pdf/८६

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७७ शिवाजी पार्क, बम्बई और हमारी जो माल-मिलकियत थी, सारी हिन्दुस्तान की गवर्नमेंट की जो जगह थी, जो जागीर थी, उस सबका टुकड़ा किया और उसे आपस में बैठ कर बाँट लिया। हमें किसी अदालत में नहीं जाना पड़ा, कोई पंच नहीं करना पड़ा। हमने आपस में बैठकर सब तै कर लिया। इसी बीच में हमने लाखों आदमियों की अदला-बदली कर ली। यह सब हमने बड़ी मुसीबत की हालत में किया, क्योंकि हमने बैठकर आपस में समझौता करके लोगों की अदला- बदली नहीं की। यहाँ तो लोगों को जबरदस्ती भागना पड़ा, अपनी खुशी से जाने का मौका नहीं मिला। उसमें लोगों पर बहुत संकट आया। हमको भी बहुत परेशानी हुई। भाग-भागकर लोग दिल्ली में आए और दिल्ली में भी ऐसी हालत पैदा हो गई कि हमारे लिये राज चलाना भी मुश्किल हो गया। अब यह सब बातें तो हुई। लेकिन जो और बातें हुई, और जो मैंने कल नहीं कही थी, वह मैं आज आप से कहना चाहता हूँ। हमारी राज चलाने की जो सर्विस थी, जो नौकर वर्ग उसमें थे, उनका भी हमें दो हिस्सा करना पड़ा । जो अमलदार वर्ग थे और छोटे-छोटे नौकर थे, उन सब का भी हमें दो हिस्सा करना पड़ा। तो जितने मुसलमान थे, वे तो भागकर उस तरफ चले गए और जितने हिन्दू और सिक्ख थे, वे इस तरफ आ गए। हमारी तरफ तो कुछ मुसलमान रहे भी, लेकिन वहां तो कोई भी नहीं रहा। गवर्नर जेनरल से लेकर चपरासी तक देश में जितने आफिसर और नौकर थे, उन सब को कहा गया कि आप पसन्द कर लीजिए कि आपको कहीं जाना है। तो अपनी ओर जितने मुसलमान यहाँ थे, उन में से ज्यादातर अपनी पसन्दगी से वहाँ चले गए। लेकिन हिन्दू-सिख तो उधर एक भी न रहे। सब-के-सब चले आए। कितने ही सालों से अंग्रेजों ने हमारी हुकूमत चलाने के लिए एक तन्त्र बनाया था, जिसको 'लोहे की चौखटी यानी 'स्टील फेम' कहते हैं। यह वज्र का बना हुआ एक फ्रेम था, जिसको सिविल सर्विस कहते हैं। यह कोई पन्द्रह सौ आदमियों की एक सर्विस थी। यह पन्द्रह सौ अफसर सारे हिन्दुस्तान का राज्य चलाते थे। बहुत साल से और बड़ी मजबूती से वह राज्य चला रहे थे। जब यह फैसला हुआ, तब हमारे पास पन्द्रह सौ आफिसर थे। उसमें २५ फी सदी अंग्रेज थे। वे सभी तो भागकर चले गए। कोई दो-तीन फी सदी रहे हों, तो वे भी चलते चले गए। तो वह जो फेम था, आधा तो टूट गया। अब जो बाकी रहा, उसमें से जितने मुसलमान थे, वह सब भी चले गए। उनमें से