पृष्ठ:भारत की एकता का निर्माण.pdf/८९

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८० भारत की एकता का निर्माण में मिलकर और समझ-बूझकर कुछ काम करें। इस कान्फरेंस में उनके प्रतिनिधि भी थे, कम्युनिस्ट लोग भी थे और उद्योगपति भी थे। सब लोग जमा हुए। तो हमारे लीडर, हमारे प्राइम मिनिस्टर पं. नेहरू ने सब को समझाया कि आज मौका ऐसा है कि हमें बार-बार स्ट्राइक. (हड़ताल) नहीं करनी चाहिए। और .. यह भी कहा कि तीन साल के समय के लिए हम ट्रस (सन्धि) कर लें कि इन तीन सालों में हम हड़ताल नहीं करेंगे और आपस में मिलजुल कर काम करेंगे । उसके लिए उद्योगपति को जो कुछ करना चाहिए, वह भी समझाया और मजदूर को जो कुछ करना चाहिए वह भी समझाया। सब ने मिलकर फैसला कर 'लिया। परन्तु उसके बाद क्या हुआ? उसके बाद वे इधर आए और इधर आकर उन्होंने प्रस्ताव किया, यह चीज हमको मंजूर नहीं है। हमें तो बम्बई में एक दिन की टोकन स्ट्राइक (त्रिह्नरूप हड़ताल.) करनी चाहिए। सो इधर आकर उन्होंने टोकन स्ट्राइक की। । उसके बाद एक स्टेटमेंट (विज्ञप्ति) निकाल दिया कि अब तो बम्बई के मजदूरों के मालिक हम है। हम लीडर हैं, वह सिद्ध हो गया है। बस हो गया - फैसला । अब तो वह कहेंगे कि हमें क्या करना चाहिए। साथ ही कहते हैं कि हम तो बाहर हैं, हम थोड़े गवर्नमेंट में हैं। तो हम चिल्ला-चिल्लाकर कहते हैं, कि जो प्राविन्स ( सूबा ) तुम्हें चाहिए, हम दे देते हैं। तब कहते हैं कि आप कौन है देनेवाले। वह तो लोग वोट देंगे, तब देंगे । जब चुनाव खत्म होगा, तब पता लगेगा। तो मैं कहता हूँ कि अगर हमारा काम इसी तरह चलता रहा, तो जो आज़ादी हमने पाई है, उससे कुछ भी लाभ हमको नहीं मिलेगा। वह जब एक जगह पर सरकार का बोझा उठाएँगे, तब उनको मालूम पड़ेगा यह क्या चीज़ है । गवर्न- मेंट चलाने से ही मालूम होता है कि उसमें कहाँ-कहाँ कांटा लगता है, कहाँ कहाँ दुख है, और कहाँ-कहाँ क्या कुछ करना चाहिए। हमें अब समझ लेना चाहिए कि हम आजाद हो गए हैं, परदेसी हुकूमत से छूट गए हैं। अब हमें देखना है कि हमारा मुल्क कहाँ जा रहा है । हम अपने देश का भविष्य क्या बनाएँ, उसका नक्शा हम से लो। हम कब तक इस तरह चलाते रहेंगे और हमारा जो कुछ है, उस सब का बोझ दूसरों 'पर डालते रहेंगे ? वह आलोचक कुछ भी कहें, लेकिन हमें रात-दिन सोचना पड़ता है कि अब हमें क्या करना है। ।