पृष्ठ:भारत की एकता का निर्माण.pdf/९२

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शिवाजी पार्क, बम्बई अब में दो रोज से बम्बई में आया, तो इसलिए आया था कि कुछ बातें मैं आप लोगों को भी समझाऊँ । अनाज का जैसा कण्ट्रोल हमने हटाया है, ऐसा दूसरा एक कण्ट्रोल पड़ा है। वह है कपड़े का। अब कपड़े के कण्ट्रोल के लिए क्या करना चाहिए और उसमें गवर्नमेंट को क्या करना चाहिए ? जो मिल- मालिक हैं, जो मजदूर वर्ग हैं, जो व्यापारी वर्ग हैं, उन सब को क्या करना चाहिए? यह सब को समझाना है, क्योंकि हमारे मुल्क में अनाज नहीं है । बम्बई शहर में तो अनाज बाहर से लाना पड़ेगा। लेकिन जो देहात हैं, अपने खाने का अनाज अपने पास रख लेते हैं, बाहर देने के लिए उनके पास कम रहता है। जो रहता है, उसका पूरा दाम हम न दें, तो फिर वे देते नहीं है और तब अधिक पैदा करने की कोई ख्वाहिश भी उनमें नहीं रहती है। क्योंकि पूरा दाम न मिले, तो वे पैदा क्यों करें? इसी प्रकार हमारे मुल्क में कपड़ा भी पूरा नहीं है । तो उससे ओर समस्याएँ भी पैदा होती हैं, क्योंकि कपड़ा तो नहीं है। अब पाकिस्तान अलग हुआ, और कपास तो वहां ही ज्यादा पकता है। हमारे कपड़े के कारखानों को उसके आधार पर रखना पड़ता है। वह लोग वहाँ से देंगे, या नहीं देंगे? या वे हमें काफी रुई नहीं देते हैं, बाहर भेजते हैं, या बाहर भेजने का मनसूबा करते हैं, यह सब हमें सोचना है। अब वह अलग मुल्क बन गया, तो उसके ऊपर हम कहाँ तक भरोसा रखें? मान लीजिए, हमको वहाँ से रुई नहीं मिली, तो कपड़े के लिए हमें बाहर से रुई ढूंढ़नी पड़ेगी। वह हम कहाँ से लाएँगे? यह सब बातें हमें सोचनी हैं। लेकिन इन सब मुश्किलात के होते हुए भी हमारे पास अगर एक पूरा पिक्चर (चित्र ) न हो, एक पूरे हिन्दुस्तान का चित्र हमारे सामने न हो और हम जल्दी-से-जल्दी अपनी जरूरी चीजें यहाँ ही बनाने के लिए आबोहवा पैदा न करें, तो हमारा काम चलनेवाला नहीं है और हमने जो कुछ कमाया है, वह सब गंवा देंगे। यदि हमने ऐसा किया तो हम बेवकूफ सिद्ध होंगे। इसलिए मैं जो कुछ कहता हूँ, वह किसी की टीका करने के लिए नहीं कहता, लेकिन मुझ को दर्द होता है इसलिए कहता हूँ। हम कहाँ तक यह बोझ उठाएँ, क्योंकि मुझ को बहुत बरस हो गए। लोग ५० वर्ष के बाद पेंशन ले लेते हैं । अब मैं कहाँ तक ठहर सकूँगा? हमारी ज़िन्दगी की एक प्रतिज्ञा थी कि परदेसी हुकूमत उठानी है। वह काम तो पूरा हुआ। लेकिन अब दिल में एक फिकर रहती है कि यह तो किया, लेकिन अगर हमारे भा०६