पृष्ठ:भारत की एकता का निर्माण.pdf/९३

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८२ भारत की एकता का निर्माण नौजवानों को बिगाड़ दिया गया, तो यह बोझ वे नहीं उठा सकेंगे। इसलिए हम सब बातें कुछ-न-कुछ हद तक ठीक कर दें, यह ख्वाहिश रहती है। दूसरी ओर यह ख्वाहिश भी बहुत होती है कि किसी जगह आराम से बैठ जाऊँ। क्योंकि हमारी हिन्दू संस्कृति में यह भी एक चीज है कि वानप्रस्थ अवस्था आ गई, तो हमारा माला लेकर बैठ जाना उचित है । लेकिन दिल में भाला गड़ा हो, तो माला चलती ही नहीं। दिल में यह अहंकार भरा है कि जिन्दगी भर का हमारा जो काम है, उसे अगर हम इसी तरह फेंक देंगे, तो क्या होगा? तो मैं अपने नौजवानों को समझाना चाहता हूँ कि हमारे दिल में जो आग जलती है, उसे उन्हें समझना चाहिए। कल मैंने अपने नौजवानों को एक चीज़ बताई थी। वह यह कि एक दिन की हडताल तो आपने कर ली, परन्तु क्या इसका हिसाब आपने लगाया कि उस से कितना नुकसान हुआ ? उससे कितना कपड़ा कम पैदा हुआ? अपने मजदूर वर्ग को यदि इसी रास्ते पर आप ट्रेनिंग (प्रशिक्षण) देते रहे, तो आप का काम कैसे चलेगा? हमारा काम तो जैसे-तैसे पूरा हो गया, लेकिन यह बोझ आपको उठाना है । आप सारी चीजें उठा कर मजदूरों को दे दीजिए, इसमें भी हमें कोई इंकार नहीं है। परन्तु आपको सोचना पड़ेगा कि देश का जो बोझ आपके सिर पड़ने वाला है, उसे आप कैसे उठाएँगे? यहाँ तो आपने एक दिन की हड़ताल की, लेकिन उधर बन्दर पर तीन सप्ताह से हड़ताल चल रही है । मुल्क नहीं है और हमारे देहातों में और शहर में लोगों को अनाज चाहिए। मगर बन्दरगाह पर हड़ताल है । आज हमारे लोग सिन्ध से भागे-भागे आते हैं, उनको हमें अनाज देना पड़ता है, पंजाब से भागे-भागे आते हैं, उन्हें अनाज देना है । मद्रास में अनाज पूरा नहीं पकता, वहाँ लोग भूख से मरते हैं, इन सबके लिए हमें बाहर के मुल्कों से अनाज लाना पड़ता है। और जब अनाज के जहाज हमारे बन्दर पर आते हैं, तो ये मजदूरों को कहते हैं कि अनाज मत उतारो, बैठ जाओ। तो अब तीन हफ्ते से ये लोग बैठे हैं। अब हम क्या करें? अब यह सवाल उठता है कि इस तरह से काम होगा, तो कौन गवर्नमेंट चलने वाली है ? वह हमें सोचना पड़ेगा। प्रान्त की गवर्नमेंट तो छोड़ दीजिए। लेकिन यह पोर्ट ट्रस्ट का मामला तो सेण्ट्रल गवर्नमेंट ( केन्द्रीय सरकार ) का है, और हमारा जो मिनिस्टर है, वह मजदूरों पर सब से ज्यादा सहानुभूति रखने वाला है । हमने बार-बार अनुभव किया है कि उसकी सिम्पेथी (सहानुभूति) मज़- में अनाज