पृष्ठ:भारत की एकता का निर्माण.pdf/९५

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भारत की एकता का निर्माण जिनका हमको कोई ख्याल ही नहीं आता । असल में वह सारा बोझ हमें ही झेलना पड़ रहा है। एक रोज सुबह हम उठते हैं तो मालूम पड़ता है कि कराची में कोई हिन्दू रह नहीं सकता। उसको भाग कर इधर आना ही है। अब एकदम कराची से लोग तार-पर-तार करते हैं कि हमारे लिए बोटों का बन्दोबस्त करो। किसी-न-किसी तरह से हमें यहाँ से निकालो । अब क्या करें ? क्या सामान है हमारे पास? यदि हम बोटों का बन्दोबस्त करें, तो सम्भव है कि जो मज़- दूर काम करनेवाले हैं, उनसे कहा जाए कि हड़ताल करो। उस सूरत में बोट कहाँ से जाएँगे? तो एक तो हमारे ऊपर यह बोझ है । दूसरा बोझ आप पर पड़ता है कि यह सिन्ध से ८ लाख आदमी भाग-भागकर यहाँ आएँगे, तो उसका तुरन्त ही कोई इन्तज़ाम आपको करना होगा । यह बहुत बड़ी परेशानी तो है, लेकिन हम उनसे यह नहीं कह सकते हैं कि आप बम्बई में न आएँ । हमें कहना पड़ेगा कि बम्बई जैसा हमारा है, वैसा ही आप का है । आप आ जाइए, तो जो कुछ हमारे पास है, वह हम आपस में बाँट लेंगे, वह हम मिलकर खाएँगे। यह न कहें तो हमारा काम नहीं चलेगा। क्योंकि बड़े दुख से वे लोग इधर आए हैं। कोई खुशी से अपना मकान छोड़ कर, घर-बार और जमीन-जागीर छोड़कर नहीं आएगा। जहाँ सारी उम्र बीत गई, वह सब छोड़कर आना कोई आसान काम नहीं है। वे लोग गुस्से से भरे हुए हैं, दुख से भरे हुए हैं, जब वे स्टेशन पर आएँ, बन्दर पर आएँ, तक हम उनका इन्तजाम न करें, तो बड़ी मुसीबत होती है। जिस किसी तरह यह सब हमें करना ही पड़ेगा। तो हम कोशिश कर रहे हैं कि उनका बन्दोबस्त करें। और उन सब को हमें हिन्दुस्तान में हजम करना है और उसके लिए हमें बदला लेने की कोई बात मन में नहीं लानी चाहिए। यह हिसाब-किताब का काम हमें आज नहीं करना चाहिए। जैसा कि मैंने कहा, यह प्रोब्लम (समस्या नहीं है कि जो लोग सिन्ध से. आते हैं, उनकी मिल्कीयत वहाँ क्या है। वे वहाँ चार-सौ, पाँच सौ करोड़ रुपया छोड़कर आते हैं, उसका हिसाब चलाने का यह वख्त नहीं है। उतने मुसलमान इधर से निकालो, इससे भी हमारा फैसला नहीं होगा। इस सारे हिसाब-किताब का एक तरह से ही फैसला हो सकता है कि दोनों गवर्नमेंटें आपस में बैठकर हिसाब करें। और यह काम बाद में करना होगा । क्या -