पृष्ठ:भारत के प्राचीन राजवंश.pdf/१०३

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मारतके प्राचीन राजवंश वर्ष ( रान जलस ) लिना मारम्भ किया, और निमुनमल्ल, भुजबलचक्रवती और कलचुर्यपक्वता विरुद्ध ( सिंहाथ ) धारण किये, तथापि कुछ समयज्ञक महामहलेश्वर ही होती रही । किन्तु इ० स० १८८५ (वि०स० १२१९) के लैपर्ने उसके साय समस्त भुवनाश्य, महाराजाधिरान, परमेश्वर परममट्टार, आदि स्वतन्त्र रानाके निशान लगे हैं। इससे गनुमान होता है । वि० स० १११९ के करीव वह पूर्ण रूपसे स्वातन्त्र्यलाभ कर दुका था । विज्ञल द्वारा हराए जाने वाइ फल्या को छोडकर तेल अरोगिरि ( धारवाड जिले } में जा रहा । परन्तु वापर भी विज्जलने उसका पीछा किया, जिससे उसको यनवासी तरफ जाना पहा । विजलने कल्याण रामसिहासन पर अधिकार कर लियों, तथा पश्चिम चौलुक्य राज्यके सामन्तोंने म उसको अपना अधिपति मान लिया । विजलके राज्यों जैनधर्मका अधिः प्रचार था। इस मतको नष्ट कर इस स्थानमें मत चलाने की इच्छासे नसत्र नामी ब्राह्मणाने ' बरव'( लिंगायत ) नामक नया पय चलाया । इस मतङ्के अनुयायीं वीरशैव ( लिंगायत) और इसके उपदेशक जगम कहूढ़ाने लगे। इस मत प्रचारार्थ अनेक स्थानों में यसपने उपदेशक भेनें ।इससे उसका नाम ईन वेॉमें प्रारीद हो गया । इस मतके अनुयाथी एक दीकी डिबिया गर्ने लटकाए रहते हैं । इसमें शिवलिंग रहता है। किंगायतके 'बसवे-पुराण' और जैनके । विजठराप-चरित्र' माम मन्थों में अनेक करामातसूचक अन्य बातोंके साथ राय और विजदेवका वृत्तान्त लिया है। ये पुस्तके मर्म आमसे ली गई हैं। इसलिए इन दोनों पुस्तकका वृत्तान्त परस्पर नहीं मिलता। * वसूत्र पुरण' में लिखा है-* बिज्जलदेबके प्रधान बलदेवकी पुत्री गगादेष यसबका गया हुआ था । चलदेके देहान्तके बाद अब इसकी ६६