पृष्ठ:भारत के प्राचीन राजवंश.pdf/१०४

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होय-दंश। 'प्रसिद्धि और सद्गुणों के कारण किज्जलने अपना प्रधान, सेनापति और | केपाघ्यक्ष नियत किया, तथा अपनी पुत्री नीललोचनाका निबाह , उसके ‘साथ फेर दिया। उससमय अपने मतके प्रचारार्थ उपदेश के लिये चसक्ने झ्या हुतस्य द्रव्य खर्च करना मरम्भ किंग्र{ यह समद सत्र शत्रुके दूसरे प्रधानने विज्ञलको दी, जिससे बसवसे विंग्ज अपरान्न हो गया । • तथा इनके अपराका मनोमालिन्य प्रतिदिन बसा ही गया । यह . इफ नयत पदी कि एक दिन विज्जलदेवने, हल्लेज और मधुय्य नाम दो धर्मेने जगमों में निकलवा डाली । यह हाल देखें वसव कमाणसे भाग गया । परन्तु उसके भेजे हुए नगदेव नामक पुरुपर्ने, अपने दो मिञ सहित राजमान्दरमें घुसकर सभा के बीच में बैठे हुए दिगपा मार झाला । यह सयर सुनका नसव पडलसंगमेश्वर नाम स्थानमें गया। वहीं पर वह शिवमें य हो गया । वसवी अविधाहिती वहिन नामांत्रिकासे चन्नबसवैका जन्म हुआ । इसने लिंगायत मतर्क उन्नति की 1 ( लिंगायत लोग इसके। शिवका अवतार मानते है।) पसव के देहान्न घोड़ वह उत्तरी कनाडा देश इल्य स्थान में जा रहा ।" *दवस-पुराण' में लिखा है: “वर्तमान इक से ०७१७(वि० सं० ८४१ ) में वसव, शिय लय हो गया । ( पढ़ संतु सर्वथा कपोलकति है । इसके बाद उसके स्थान पर बिजलने चराको नियत किया। एक समय एन र म बेस्य नामक जामको रस्सरी ६घार विज्ञहने गृथ्वीपर घसीटवाए, जिससे उनके प्रण निकल गये । यह पर्छ चैत्र जाईच और चोमण मामके दो मालवियोंने राजाको मार डाली । उसमय इनपसर पर जितने ही संचार और द य इल्याचे भागकर उल्बी नमः स्थानमं ी आपा । विग्नल दामाइने उसका पीछा किया, परन्तु ए र भषा ! उस घाद् विग्गल पुग्ननै चट्टाई की। किंतु