पृष्ठ:भारत के प्राचीन राजवंश.pdf/१२२

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परमार वंश ।
 

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परमार-ये । संख्यामें छप चुका है। तीसरा ३१ विक्रम संवत् ११४६ की मधुसूदनके । मन्दिरमें भिला है । चौथा विक्रम संवत् १९६५ का कनखल तीर्थमें मझा है । और पांचवाँ १२७६ ईसव सुन १२१९) का है। यह | मकाबले बिके पासवाले एक वालाव पर मिला है । इस राजाका एक लैस रोहिहा गॉवमें और भी है। पर इसमें रिचत टूटा हुआ है। | इसके वो रानियाँ थी—ग और शृङ्गारवे । ये मण्डलेश्वर चौहाने की लड़कियाँ थीं। इसकी राजधानी चन्द्रायवर थी। इसके अधीन १८०० गाँव थे 1 शृङ्गादेवीने पाइर्वनायकै मन्दिरके लिए कुछ शूमिदान किया था । इरा राजाने एक बाणसे बयर परामर सड़े हुए तीन भैको मारा था। यह बात विक्रम-संवद १३४४ ॐ पदनार यणके लेसे प्रकट होती है। उसमें लिखा है: एकप्रागनिवार्य में निरीश्य कुरुयौघसइतम् ।। इक श्लोक प्रमाणस्वरूप आबूके अचलेश्वर मन्दिरके बाहर मन्दाकिनी नाम कुण्ड पर घनुषधारी धावपक्की पूरे दक्की पापाप्मभूचि आज तक विद्यमान है । उसके सामने पूरे के पत्थरके तीन भैसे बराबर थरार अहे हैं। उनके प्रेग्नमें एक छिद्र बना हुआ है। | धारावर्षके छोटे भाई का नाम प्रल्हादन था । वह पहा बिदा था । सफा बनाया हुआ पार्थपराक्रम-व्यायोग नामक नाटक मिला है । कार्तिकीमुद्दाम और पूर्वोक चम्पल-तेजपालक प्रशस्तिमें गुजरेश्वर पुरोइत सोमेने इसकी विचाकी प्रशंसा की है। उसने अपने नाम अहदनभुर नामक नगर बसाया, जो आज कल पानपुर नामसे प्रसिद्ध है। यह राजा विद्वान होने के साथ ही पराजर्षी मी था । रस्तुपालजपाली पति से ज्ञात होता है ॐि यह सामन्तसिंहसे लड़ा था । (5} सामन्जस्व इमितिकृतिविति, धग्रनि११णइक्षिणा: । प्रद्मादनस्वदनु दनुजैसमरिचयपुनश्चमवार ॥ १८ ॥