पृष्ठ:भारत के प्राचीन राजवंश.pdf/१२४

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

________________

आयूके परमार । स० १२३० ) में आनु पर तेजपालकै मन्दिर प्रतय हुई । यह मन्दिर हिन्दुस्तान की उत्तमोत्तम कारीगरका नमूना समझा जाता है। इस मन्दिके लिए इस राजाने इचाकी गाँव दिया या । विक्रम संवत् १२८७ के सोमसिके रायके वो लेख इसी मन्दिरमें लगे हैं। विक्रम-चैवद् १२९० का एक शिलालेख गोड़वाड़ परगनेके नाम गॉब(जोधपुर-राज्य) में मिला है। उससे प्रकट होता है कि सौमसिंहनें अपने जीलैनी अपने पुन कृष्णराज युवराज बना दिया था। उसके इर्चॐ लिये नाणा गॉव । जहाँ यह लेख मिला है ) दिया गया था । |१६-कृष्णराज तीसरा ! यह सोमसिहका पुर था और उसके म हुआ 1 इसको कानड़ गी कहते थे। पाटनारायणके लेख में इसका नाम उसका उत्तराधिकारी कृष्णदेव र वस्तुपाल तेजपाल मन्दिरके दूसरे लेखमें कान्हड़देवलिया है । अपने पुत्र-राजपनमें प्राप्त नाया गवमै लफुल, महादेवकी पूजाके निर्मित इराने कुछ बृत्ति लगा दी थी। अतः अनुमान होता है कि यह क्षेत्र था । इसके पुनका नाम शतापसिह था । | १७–प्रतापसिंह। यह कृष्णराज । पुर 1 उसके बाद यह गई पर बा । को ज्ञात कर मरे बाके राजाओंके हाथमें गई हुई अपने पूर्वज राजधानी चन्द्रवि को इसने फिर प्राप्त किया। यह अति लेसे प्रष्ट है। : । यथा:-- नारायण का प्रय 4-रे जगदेकचौर# इन्द्रावती ११नादभिरममाभुक नाइ ये कर्णदिई कमिवैद्रन । | अ६ जैकर्ण पद मेबाई जैत्री सत् हो, जिसकी समय विक्रम सौधार ।। १८ ।।। (१) सौर में दिन (लादेश) की मूर्ति पधारान में भी हम समान तो है । ६ एक इयों की शो है। इसमें इत; 3 विड़ भी रहा है । में भिका एल