पृष्ठ:भारत के प्राचीन राजवंश.pdf/१२५

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भारतके प्राचीन राजपैश संवत् १९७० से १३०३ तक है ।समय होनेझै झारण | मेवाड़ा मी आबू पर अधिर करने चेष्टा इरते रहे हो तो आश्चर्य नहीं । इसी लिए धाराचपके भाई प्रहाइनको भी इग्रपर चढ़ाई करनी पड़ी थी । सिरोही राज्यकै काागरा नामक एक प्राचीन गाँबसे विनमसंयत् १३०० ( ईसवी सन १२४३) को एक शिलालेख मिला है। इसमें चन्द्रावती महाराजारान आल्हणसिंहका नाम है । पर, उसके संशा कुछ भी पता नहीं चला। चम्भव है, वह परमार कृष्णराज तीसरेका ज्येष्ठ पुब हो और उसके पीछे प्रतापसिंहने राज्य अप्ति (फया हो । इस ददामें यह हो सकता है कि उसके दशजने ज्येष्ठ पत। आल्हा नाम ॐ हरे कृष्णपजको सीधा ही हासे मिग द्विपा हो । अथची यह झाल्हणसिंह और हैं। किसी चंका हैं।ग्ग और प्य देव तीसरे से चन्द्रावती छीन दर राजा बन गया होगा। में पि। विक्रम-सनत् १६२० का एक और शिटाळे आजार है। उसमें महाराजाधिराज अर्जुनदेवका नाम है । अनः या तो यह पैठ हैराना होगा यी उछ आन्दहका उत्तरार्धा होगा । इन्से राज्य पुनः प्रानि का प्रतापसिंहने चन्द्रावतीचे शासै टीम! रोगा । यह बात प संत के उत्तर प्रकट होता है । पर जब तक इस दसे इनका पूरा पूरा इचान्त न मिले तर म इम विपमें निश्यक कुछ नहीं कहा जा सकता। | मताहिके मन्त्री का नाम देण थी । यर् माह्मणानातिका ची। उपने विक्रम- इद् १३५४ gी सुन ११८७ ) में प्रताप के समय [Bही-राज्यने गिरवर पाटनागरगड़े मन्दिरका उद्धार गरी । शा पापा 28 प्रतापसिंह तक ही वाटी मिन: है । लगा इसी पना समय जाटो चाहानन पाए हुन्पी पत्रिम अदा दुधा दिया था। इसे अपना इम इटारी, है