पृष्ठ:भारत के प्राचीन राजवंश.pdf/१२६

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अचूके परमार। विग्म-संवत् १३६८१ ईसवी सन १३११ ) के आसपास, चन्द्रावतीो छीन कर राध लुभाने इनके राज्य समाप्त कर दी। विक्रम-बत् ११६ ( ईसवी व १२९,९ } फा एक लेख वर्माग गोंडके रा-मन्दिरमें मिला है। उसमें * महाराजकुल-विमसि कल्याणगंगयराज्य में शद खुढे हैं। इस विमासिके वंशका इसमें छ भी वर्णन नहीं है। यह पवी विक्रम-भवतुर्की चौदहवीं शताब्दके युहितों और चाके लेयामें मिलता है । सम्भवतः निफट रहने कारण परमार ने भी यदि इसे घरण किया हो तो यह विक्रमसिंह प्रतापसिंहका उत्तराधिकार हो सकता है। पर विना अन्य प्रमाण निश्चय रूपसे कुछ नहीं कहा जा सकता । भाटकी ख्यालमें लिखा है कि अनूका अन्तिम परमार राजर (रूण नामका था । उसको मार कर चौहान ने आबूको राज्य छीन लिया । यही बात जन-से भी पाई जाती है । इसी राजाके विषय में एक कथा और भी प्रचलित है ! वह इस प्रकार है:| राजी हुण) की रानका नरम पड़ा था । एक रोज राजा अपनी पनी पतित्प प६ लेनका निश्चय क्रिया । शिक्षाका चहाना करके वह कहीं दूर जा रहा । कुछ दिन घाई एक सहन-सवाई साथ उसने अपनी पगड़ी रानीके पास भिजाकर कहला वियो %ि राजा अनुगके हायर मारा गया। यह सुन कर पिझाने पातकी उस पछीको गोदमें रख कर रोते रोते प्राप्य छोड़ दिये । अर्थात् पतिके पीछे र हो गई । जब यह समाचार राजाको मिला त• वह उसके शकि ल हो गया और उनकी चिंता इई गई ‘हाय पिङ्गला ! यि पिला |'चिल्लाता हुआ घरगान !! अन्तर्ने गरिन्थ इपास उसे वैराग्य हुया । अतएव न राजपाट छोड़कर गुरुके साथ ही भह भी चनमें चला गया। इस अवसर पर चीनने आज आय द लिया। | इस जनति पर विश्वम नहीं किया जा सकता । मृत भेजने लिएर १ (क परमारोंफो छलप्ते भार फर चहानाने आपूका राय लिया ।