पृष्ठ:भारत के प्राचीन राजवंश.pdf/१२९

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भारतकै प्राचीन राजबंश जालौरके परमार । विक्रम संवत् ११७४ (ईसवी सन् १११७ ) आगाड़ सुदि ५ की अक लेह मिला है । यह लेख जालोर किंलके सोपानेके पालकी दीवारमें लगा है । इसमें परमारोंकी पदि इस प्रकार लि गई हैं:-- १-यापतिराज ! पूर्वोक्त में लिखा है कि परमार-वंश बापतेरा नामक राना हुआ । यद्यपि माल्में भं राजा वाक्पतिराज ( भुज ) हुमा है यावि जसके कोई पुग्न न था । इस दिए अपने भाई के भोजको उसने गोव लिया था । पर लेमें वाइपतिज्ञके पुत्रका नाम चन्दन लिया है। होम प्रतीत हो कि यह वाक्पतिर इन माळवेके परस्पतिजसे भिन था। -चन्दन । यह यातिरानका पुत्र था और इसके पीछे गद्दी पर बैठा । ३-देवराज । यह चन्दनका पुत्र और उत्तरारी था। ४ अपराजित । इसने अपने पिता देवराजळे वाद् राज्य पाया। ५–विज्ञछ । पर बापने पिता अपराजिता उत्तराधिकारी हुआ। ६-धारावपे । यह विज्ञलेका पुत्र .या तथा उसके बाद राज्सको अधिकारी हुआ । ७–बीसः। धावर्षका पुत्र वीरुल ही अपने पिताका उच्चाधिका हुआ । इन राना भैलरने सिवाके मन्दिर पर सुइ-कदा चाया,