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क्षत्रपोंके रिकार्डो आदिसे इस बातका पता नहीं चरता कि वे अपने देशसे कौनसा धर्म लकर आये थे। सम्भव है कि वे पहले जरदशती धर्म माननवाले हो, जो कि सिकन्दरसे बहुत पहले इरानमें जरदश्त नाम के पैगम्बरने चलाया था। फिर यहाँ आकर वे हिंदू और बौद्ध धर्मको मानने और हिंदुओ जैसे नाम रखने लगे थे।


हैहयवंश।

क्षत्रप वंशके बाद हैहय-वंशका इतिहास दिया गया है। साहित्याचार्यजीने इसको भी नई तहकीकातके आधारभूत शिलालेखो और दानपनों के आधार पर तैयार किया है। इतिहासप्रेमियोको इससे बहुत सहायता मिलेगी।

यह (हैहय) वंश चन्द्रवंशीराजा यदुके परपोते हैहयसे चला है और पुराने ज़मानेमें भी यह वंश बहुत नामी रहा है। पुराणोंमें इसका बहुतसा हाल लिखा मिलता है। परन्तु इस नये सुधारके जमानेमे पुराणोकी पुरानी बातोसे काम कंहा चलता। इस लिये हम भी इस वंशके सम्बन्धने कुछ नई बातें लिखते हैं।

हैहयवंशके कुछ लोग महाभारत और अग्निपुराणके निर्माणकालमें शौष्टिक (कलाल) कहलाते थे और कलचुरी राजाओंके शासन में भी उनको हैहयोंकी शाखा लिया है। ये लोग शैव थे और पाशुपत पथी होने के कारण शराब अधिक काममें लाया करते थे। इससे मुमकिन है कि ये या इन सम्बन्धी शराब बनाते रहे है। और इसीसे इनका नाम कलचुरी हो गया है। संस्कृतमें शराबको 'वल्य' कहते है और 'चुरि' का अर्थ 'चुआनेवाला' होता है।

उनमें जो राजघरानके लोग थे वे तो कलचुरी कहलाते थे और जिन्होंने शराबका व्यापर शुरू कर दिया थे 'वल्यपाल' कहलाने लगे, और इसीसे आजकलके कलकर था कलाल शब्दकी उत्पत्ति हुई है।

जातियोंकी उत्पत्तिकी खोज करनेवालोको ऐसे और भी अनेक उदाहरण मिल सकते है। राजपूतानेकी बहुत सी जातियाँ अपनी उत्पत्ति रातपूतानो की बताती हैं। वे पुरबकी कई जातियोंकी तरह अपनी वंशपरम्पराका पुराने क्षत्रियोंसे मिलनेका दावा नही करता जैसे कि उधरके कलवार, शॉडिक और हैहयवशी होने का करते हैं।

(१) उर्दूमें छपी हिन्दू थियोसॉफिकल डिक्शनरी, पे. २९६

(२) जबलपुर-ज्योति, पृ. २४