पृष्ठ:भारत के प्राचीन राजवंश.pdf/१३४

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मालचेके परमार । ३-सीयक । यह सिंहका पुत्र और उत्तराधिकारी था' ! इन देंन राजाओंका। अयं तक कोई विशेष हाल नहीं मालूम हुआ । ४-वाक्पतिराज । यह सायकका पुत्र था और उसके पॐ गद्दी पर बैठा । इसके विपसमें उपुर १ गवालेयर ) फी प्रशस्तिने लिखा है । यह अवन्तीकी तरुणयोंके नेमपी नामलों के लिए सूर्य-समान था । इसकी सेनाके घोडे गा और समुद्का जल पाते थे' । इसका आशय हुम यही समझते हैं। कि उसके समयमै अवता राजधानी हो चुकी थी और इसकी विजययात्रा गङ्गा और समुद्र तक छुई थ' । ' ५–वैरिसिंह ( दूसरा )। यह अपने वताका उत्तराधिकार हुआ। इसके छोटे भाई वस(१) तर अधि,मौलिमारनप्रभाकरभिवपादपीठः ।। श्रीधयक ककृपाशज लोमिमग्नय ग सुनको विजबिन बुरे भूमिपाल. [६] । | ( एपि० इम्डि", जि !, भा• ५} ( ३ ) तस्माद्वान्तवनमानारविन्दभस्वामभूत्रकृपापानाची । भवाझ्पति तमखानुकृञ्जरहागा-समुद्र-सलिलानि पिबन्ति यस्य [१०] ( एपि• इडि•, जि० १, भा० ५} , (३) भाटकी याद लिखा है कि इस ३७ निनी दाईके बाद कामरूप ( भासाम ) पर विजय प्राप्त की थी । यद् वाक्म भी पूर्वक उदयपुर प्रशस्तके लेनको पुष्ट करता है। इन्ही पुस्तक में इरफ खीफा नाम फलादे नि ३ । १६ वर्ष राज्य करने बाद रानीसहित कुकनमें आकर इसका नाम प्रस्थ डे भी इस बात है।( परमार आ घार छ मालवा, १० ३-३} | Y) भाटी रुप्या किया है कि वारसद चौथैमा लिए गया पा। घ उन गी; के राजाक, घगवत करनेवाली उसकी मौद प्रश्नाके, ११