पृष्ठ:भारत के प्राचीन राजवंश.pdf/१३५

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मारतके प्राचीन जिग्ग हुचे बागको हुलाका जागीरमें मिल्ला । उसमें बसाहा, भय आदि मगर, थे । इस द्वंसिंदके वशका हाल आगे लिखा जायगा ।। चसिएका दूसरा नाम बञ्चस्वामी या। उदयपुर ( गवालियर) की प्रशस्ति लिखा है कि उसने अपनी तलवारका बारसे शत्रुओं को मार र भारा नामक नगरी पर दुल कर लिया और उसका नाम सार्थक कर दिया। ६-सीयक { दूसरा )। यह वारसा पुत्र और उत्तराधिकारी थी । इसका दूसरा नाम हर्ष प्रा । नवसाह साहूचतिर्क हस्तलिवित प्रतियॉमें इसके माम श्रीहर्ष पा सीपक, तिल्कमक्ष में हर्ष और सीय दौना,ौर प्रबचन्तामॉर्गको मिञ मिन्न इम्तालावेत मांयाम श्रीहर्ष, सिंहभट और तदन्तमट पाठ मिलते हैं । तथा पूर्व र उदयपुरकी प्रशस्त एस। नाम श्री पंद्रेच उर अाझे लेरामें ग्रंपच लिए । विद्ध, सद्दापता हैं । इसके बदले दानें अपनी निता आप भग्मक फन्दा इसे प६ दा । गफ थे २७ ॥ नित किम का है और यह भी कर जाता है कि नई इगेन, ५५ वर्षको अवग्याने, मृत्यु प्राप्त हुने । (परयार• माट*, पृ: '} (1) जनस्तरमन्पाम्रा ली | पट्ट ] वामन गम्। शीर्न भाराभव मद्धारा चैना न ६ [१] | ( पि• •, * 1, + ५ (*) स्पष्मू-(५)! पप ना ) गज़न्द्रवरदान । थपिदै १२ ग या मिर् को दुध मइगमगाष [१३] १-० -, •ि }, भाग ५} {५) F नपा मारे गृली ३६ । १५