पृष्ठ:भारत के प्राचीन राजवंश.pdf/१३७

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मारत प्राचीन शिवश सोमदेयके समयका एक शिलालेख कस० ८९३ (वि० स० १०२८=ईसवी सन १६१ ) अश्विन कृष्ण अमावास्याका मिला है। र, उसके अनुयायी करानका एक तान्नपत्र, शक संवत् ८९४ (वि० सं० १०२९ ६० सन् ९२ } आश्विन शुक्ल पूरि मिला है। इसमें वोगमा देहान्त वि० सं० १०२९, के आखिन इ# १५ के पहले। होना निश्चित है। $--वाक्पनि, दृस मुञ्ज । यह मायक, दूसरे ( घ) का ज्येष्ठ पुन था । विद्वान होने कारण पडतोंमें यह वाक्पतिराजकै नामसे प्रसिद्ध या । पुस्तक में इस वायतिराज और मुझ दोन नाम मिलते हैं। इसके चट्टान अनबर्मा में अमरुशतक पर सिंकीन नामक टीका लिया है। इस तिक थाईसवें श्लोक का करते समय अर्जुनम्मिने मुजका एक लाप उद्धृत किंथा है। वहाँ पर उसने हिना है -4 या अस्मत्पूर्वजस्य चक्पिर्तिरजापरनाम्नो मुनदेवस्य । दास वैतागामे इत्यादि।" अर्यात्-- जैसे हमारे पूर्वज बारपनि उपनाम्वाले ऋग्वका ६ नोक, ‘दासे कृतानि' ३'यादि हैं। इस तरह तिल-भञरीम भी उसके मुन्न । याबपतिराज दोनों ना मिलते हैं । दशरूपावलो कती धनिकन " मणयकुपिता हा देवी ने इस को एक स्यउपर ता मुक्का बनाया हुआ। लिहा है और दूसरे पलपर बाग्पतिगमका । विठ्ठल-मून युनिके कक्ष दाधने मुजी प्रभाके तीन श्लोक।जसे में मुझ और तसमें बायपविनि म दिया है। इससे स्पष्ट है ॐि मैं दोनों नाम इके ही अन्य थे । । उदयपुर ( गवालियर ) में सर्च इम रामाका नम देव बाप हिंपन्न ही मिलता है, जैसा कि उक्त सृषकै तरचे श्लोक हा ? - १) Ep Ind FIT, P 235 ।