पृष्ठ:भारत के प्राचीन राजवंश.pdf/१४

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मरवाहमें कलालोंकी एक शाखा है वह अपनी उपप्ति टाक जानिक राजपूतोंसे चता है। मी प्रकार गुनरात माशाह भी 'टाक-गोत' से पलाये ही थे और दारावरे कारधारने ही इनो वादगाही चिली पी । नरे इतिहासोंमें मी नको 'शक' लिया है, और इनके हालात कहलानेका यह सपन दिया है कि, इनका गलपुरुष गाडू बाइ-उलमुक, जो कि फीरोनशाइदा साला था अमीरोंमें दाखिन होने में कइल ज्यश सरारदार (शराबड़े शंटारसा अधिकारी) घर। दगी प्रचार नागोरके पुराने बईग खानजादे भी कलाल ही में। अबतक एक भा ऐनी दिनाय नही मिली है जो हिदुस्तानो पुराने राजाओके ममयक राज्यारन्धा हाल बतलाने । पर भय सपर जो रि, दो पीटीकाही तातारसेभाया ना था और जिन राज्यका सव इन्तिमाम यही हिन्दू समस्तमान विद्वानो हापनें था, अपने प्रवचरे लिये अच्छा मिना आता है, तर फिर पादिमोसे जमे हुए विद्वान् राजाओचा प्रयध तो क्यों नहीं अच्छा होगा। इसके दाहरणस्तरूप हम राजाधिराज करचुरी कर्णदपक एप दानपत्र असहान पाली इस बातें लिखते है "राध्यरा ETम ई भागेमि बना हुआ था, जिसके बडे बडे रूफ्सर थे। एक साधी राजममा भी, निमम बैंड कर ला, युबराम और सभासदों रास्ताइसे, काम किया करता था। इन सभासदकोदेस्क्व र नगरा मुगल बादशाहों अरफान दोस्त (राममंत्रियों से मिलते हुए ही थे१ महामनी- पर-दत्त-सदानत (प्रतिनिधि) २ महामात्य-नीन-ए थानम । ३ मदासामन्त सिपहसालार (मीर-दल-दमय, सम्बरवानीन)। महापुरोहित-सदर-उल-रिदिर (घमाधिकारी)। महाप्रतीहार-मीरमजिन्छ । - महाक्षरित्र-मीमुनी (मुनी-उल-मुन्दन )। ७ महानमान-मीरअर । ८ महाश्वगायनिक-भौर-भापुर ( भग्नता नी1 (१) मारणार की ममममारांकी रिपोर्ट गा १८९१, पृ०1