पृष्ठ:भारत के प्राचीन राजवंश.pdf/१५२

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मालदेके परमार। गुफा द्वारा एक महलमें पहुँचना और पिंजरे में लटकते हुए तत' द्वार रूपवती के वेश नर्मदाको पहचान कर उससे मिलमा वर्णित है । म सर्गम–राजाने नमैदासे यह सुनाई रत्नावती नगर यहाँसे १०० कोस दूर है। यज्ञांकुश वॉका स्वामी है । उसके महलके पास | तालाघसे सुवर्ण-कमल लाकर जो कोई शशिप्रा कान में पहनावेगा | उसी को नागराज अपनी कन्या देगा 1 इस पर राजाने वंकू मुनिके पास जाकर उनसे सहायता में । दसवें सर्ग--का राजाकों समझाना, राजाका रत्नचूड़ नामक नागकुमार द्वारा, जो शाप तौता हो गया था, शशिप्रमाको सन्देश मेजना और नागकुमारका शापसे छूटना लिखा है। ग्यारह सर्गराजाचा बंकु मुनके आश्रम जाना, रामाङ्गद द्वारा परमारोंकी उपत्तिका वर्णन और उनकी वंशावली हैं। नावे सम–स्य राजाको शशिप्रभासे मिलना वर्णित है। | तेरा सर्ग-राजाका बंकु मुनिलै यातचीत करना, विद्याधरराज लड़के शशिखण्डको शापसे छुद्धाना; वियाघरोंकी सेनाकी सहायता पाना र राजीका वैज्ञांक पर चढ़ाई करना लिया है ।। चौदहवें सर्गम —राजाका विद्याधर-सैन्यसहित आकाश मार्ग से रवान होता, राष्ट्रवादफा घन आदिकी शोभा वर्णन करना और पाताळ-मद्रा तीर पर पैनासहित निवास करना पति है। पन्द्रावें सम- पाताल-गामें जलक्रीड़ाका वर्णन हैं। शोलहवं शशिप्रभाका पत्र लेकर राजाकै पास पाटलाफा आना; राजाका उत्तर देना, रत्नचूड़ा मिना, माझ्दो दशके पास सुवर्ण-कम मॉगने भेजना, सफा इनकार करना, रमाइदा वापस आना और युद्धकी तैयारी करना है।