पृष्ठ:भारत के प्राचीन राजवंश.pdf/१५७

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भारतके मीचीन राजर्वेश मार डाला हो । विक्रमादित्य गाई और उत्तराधिकारी जयसिंह दूसरे शक सय ९४१ (वि० स० १८७६) , एक लैस से इसका प्रमाण मिलता है। उसमें लिखा है कि जयसिंहने भेज उच्च सहायकों सहित मगा दिया। यह भी लिखा है कि जयसिंह मौनरूपी मलके लिए चन्द्रमान था। | फाशमी पण्डित बिल्हणने अपने विक्रमाङ्कवचन'काव्यफ प्रथम सर्ग ९०-९५ लोकोंमें चालुक्य जयसिंह पुन सोमेश्वर ( आइनमल्ल ) हारा भौजको मुगाया जाना प्रावि लिंखा है। इससे अनुमान होता है कि भोजने जयसिंह पर शायद विजय पाई हो । उसी बवा लेनेके लिए सोमेश्वरने शायद भोज पर चढ़ाई की हो । परन्तु पई बात दक्षिणकें किसी केंसमें नहीं मिली। अप्यग्य दीक्षितनें अपने अलङ्कार-यन्य अवलयानन्द, अप्रस्तुतप्रशसके उदाहरणमें, निम्नलिखित लोक दिया है - कान्दिा , हे कुम्भोद्भव, जलधिरह, चाम गृछासे झा छो, नर्मदाह, त्वमपि चझिं में नामक स्मात्सपन्या । मालिन्य ताई फरमानुग्दासे, मित्घमबीन नेनामानि , विगार्सा समज्ञान, कुपित झन्तलागिपरन्छ । इस समुद्ने नर्मदा उसके जलके काले होनेका कारण पूछा है। इनमें नर्मदाने फवा है कि कुन्तलेञ्जरके हमले में हुए माळवैवाली नियों के कलाश्रित आँसुओं में मिलनेसे मेरा जल काढ़ा हो गया है। इससे भी सुचित होता है कि कुन्तठवे राजाने मारपेयर चढाई की यीं । परन्तु किंस नाम न होने से सब युद्ध किस समय हु इसका पता नहीं लगता । अयं नहीं जो यह सामेश्वरको ही यणेन हो । ११४