पृष्ठ:भारत के प्राचीन राजवंश.pdf/१६०

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मालवैके परमार। कि * पह राजा मौन हीं था । बम्बई मैनेंटिपरमें जो यह लिखा है कि यह राजा आम्फा परमार या सो ठीक नहीं । क्योंकि उस समय आबू पर पन्तुको अधिकार था, जो अपहिलवाहे के भीमदेषफा एक छोटा सामन्स, था।” परन्तु हमीरा अनुमान है कि यह राजा भोज नहीं, किन्तु •पूर्वोक गम ही था । क्यॉकिं फरिश्तों आदि पारसी तवारीखोंमें इसके झहा परमदेव और रूही चमिदेवके नामसे किंवा है, जो भीमदेवका ही अपभ्रंश हो सकता है। उनमें यह भी लिखा है कि यह गुजरातभरवालेका राजा थी । इससे भी इसका बोध होता है 1 चम्बई गैजेटियरसे भी इसका बोध होता है। क्योंकि उस समय आबू और गुजरात दोनों पर इत्तफा अधिकार पी। | गोविन्दचन्द्र वि० सं० ११६१, पौष शुक्ल ५, रविवार, ॐ दानपत्र' यह झोक है: याते श्री भेज५ दिनु( इधरवधूनेत्रसमातेपर झ झ गया। घ मारपचे ज्ञापमाने । अ य । (व रिनी भिदिवबिभुनिर्भ प्रतियोपाद्धैत का विश्वासपूरै गमगनदिह ४ पतंवन्देन ॥ ३ ॥ अर्थात् मोज और कणके मरने के बाद जो पृथ्वी पर गढ़वड़ मची थी उसे कन्नौजके राजा चन्द्रदेव (गढ़वाल) ने मिटाई। इस चन्द्रदेवको सुमय परमार समवेयके राज्यकालमें निश्चित है। हमारी रानी र लोकसे यह सूचित होता है कि चन्द्रदेवका प्रताप मेज और यूके बाद समका, उनके समयमें नहीं। भोज बहा विद्वान्, हानी और विज्ञान भाभयदाना था । पर { ग्वालियर) की प्रशस्तिकै अठोर लोकसे य६ चत प्रकट होता है साधि विहितं दत्तं ज्ञातुं तघन छैनचिन्। किमन्यत्कविज्ञस्य भौजन्य प्रास्यते ॥ *(१) In, An, Vol. Iy, P, 103, 3. , A , , १९७