पृष्ठ:भारत के प्राचीन राजवंश.pdf/१६४

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मालधेरै परमार । मनकी बनाई छपी हुई पुस्तके में सरस्वतींकण्ठामरण साहित्य असिद्ध पुस्तक है। इसमें पांच पन्छेिद हैं । उस पर पड़त रामेन्दा भने ढका छिली है । मोजकी उम्पू-रामायण पण्ईित अपचन्द्र गुन्द्रकी टीकाहस छपी है । पुस्तककी समाप्ति पर का नाम विदर्भ लिखा है । परन्तु रामचन्द्र बुधेन्द्र और लमणसूरि उसको भौजी बनाई हुई लिखते हैं। | भाजफी सभामें अनेक विद्वान थे ! भोजप्रबन्ध और मनन्धचिन्तामपि नादिमें कालिवास, घरुचि, सुबन्धु, वाणा, अमर, रामदेव, हरिवंश, शहूर, कलिङ्गः कपूर, विनायक, मद, वियाविनोद, कोकिल, तारेन्द, रागोर, भाप, धनपाल, सीता, पण्डिता, मयूर, मानङ्ग यदि विदानाँका माजहीकी समामें रहना लिखा है । परन्तु इनमसे बहुत से विद्वान मोजसे पहले हो गये थे। इस लिए इस नामावली पर हम विश्वास नहीं कर काश्ते ।। | मुज और सिन्धुजके समयके कुछ विद्वान् भोजफे समय तक विद्यमान है । इनमें से एक धनपाल थी। उसफा छोटा भाई शोमन जैन हो गया । यह सुन कर भोजने कुछ समय तक जैनफा धारा आना बन्द कर दिया । परन्तु शोभनने धनपालकी भी जैन कर लिया । धन्पाली रची तिकमझमें भोज अपने विषयकी कुछ बातें लिंखाना चाहता था । पर कविने इन्हें न लिंखा । अतएव भेजने उसे नष्ट कृा दिगई । किन्तु अन्तमें उसे इसका बहुत पश्चात्ताप हुआ । उस समय उसकी मागास धनपालकी फैन्याने, जिसको घर् पुस्तफ फण्ठाय थी, भोजको थहे पुस्तक सुनाई। इससे उसकी रक्षा हो गई । भौजके समय भी एक कालिवास था, जो मैघत अवि कृतसे भिन्न था । परन्तु इसका कोई अन्य न मिलनेने इसका विशेष वृत्तान्त विदित नहीं । प्रबन्धक्काने इसकी प्रतिमा और कुशाग्रबुद्धिका वर्णन १२१