पृष्ठ:भारत के प्राचीन राजवंश.pdf/१६६

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

________________

मालवैके परमार । मुसलमानने उन शिलाको फर्श पर लगा दिया है। ऐसी ऐसी शिलायें | वहीं पर कोई ६० या ७० के है । परन्तु अव उनके लेख नहीं पड़े। जा सफ। । | नवमकी प्रशस्ति में इस पाठशाल्लाका नाम सरस्वतीसइन { भारतीमवन ) लिखा है । यह भी लिखा है कि वेदवेदाङ्ग इसमें बझै बड़े जाननेवाले चिनुन् व्याप्यं रहे थे । इस पाठशालाको, ८६१ हिजरी ( १५५७ ६० ) में, मालपके मुद्दम्मदशा लिंलजीने मसजिदमें पारित किया । यह भृक्षान्त दरवाजे परफे फारसी लेवसे प्रकट होती है। इस पाठशाला लम्त्राई २०० फुट और चौडाई ११७ फुट थी । इस गास एक के भा, जो सरस्वती-कूप केलाता था । वह अब अक्कलकुईने नापसे प्रसिद्ध है। मोजके समय विद्या बहुत प्रचार शोनेके कारण यह प्रसिद्धि भी #ि जो कोई उस कुवेका पानी पीत था उस पर सरस्वतीकी कृपा हो जाती थी । इसी मसजिद में, पूर्वोक्त शिलाऑर्के पास, वो स्तम्भों पर उदयादित्य समयकी व्याकरण-कीरिकायें सर्पके आकारमें सुदी हुई हैं। मोज घड़ा दानी यां) उसका एक दानपत्र वि० सं० १०७८, च सुदि १४ ( १०२२ ईसवी ) का मिला है। उसमें आश्वलायन शास्त्राणें भट्ट गोविन्दुके पुत्र घनपति भट्टको भोजके द्वारा राक नामक पामका दिया जाना लिज़ा है । यह दानपन घारामें दिया गया था । यह गोविन्द भनु शायद वहीं हो जो थाके अनुसार माँहूझे विद्यालयमें अध्यक्ष था। | मोनके राजत्वकालके तन संवत् मिलते हैं। पहला, १९१९ ईरावी ( वि० सं० १०\७६ ) नि चौवय जयरत्ने मालवेवालोंको भोन सहित हराया था। दूसरा, वि मुं० १९७८ (१०२५ ईसवी ) अह १३