पृष्ठ:भारत के प्राचीन राजवंश.pdf/१७०

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मालवेके परमार। | ३३–४१ उचर और ७५–११ पूर्वमें हैं। यह कुण्द्व उसके चारों तरफ खिंच हुई पत्थर दृढ़ दीवारमा अब तक बिद्यमान है। कुपका व्यास कोई ६० मन है । वह गहरा भी बहुत है । वहीं एक टूटा हुआ मन्दिर भी हैं, जिसके पियर्मे लोग कहते हैं कि पड़ मी भीका वनवाया हुआ है । बहुधा पहले राजा दूर दूर से तीर्थीका जल मँगवाया करते थे । आज फल भी इसके उदाहरण मिलते हैं। | सम्भव है, घाराकी लाट-मसाजेड मी मोजके समय सँडहले ही बनी हो । उसे वह वाले भोजका मठ बताते हैं। उसके छेसे प्रकट होता है कि उसे दिलावर गोरीने ८०७ ईसवी ( १४०५ ६० ) में वनवाया । इस मसजिदके पास ही लोहे एक लाट पट्टी है। उसीसे इसका यह नाम प्रसिद्ध हुआ है । तुजक जहाँग्रीने लिखा है कि यहू लाट दिलावर गौने ८० [जरीमें, पूर्वोक्त मसाजेद धनबाने समय, बस धी । परन्तु उक्त पुस्तक रचयिताने सन लिइनमें भूल का है 12 के यान पर उगने ८७० लिख दिया है। झन पता है कि यह हट मोना विजयस्तम्भ है । इसे मोजने 'दक्षिण चीझुक्यों और त्रिपुरी (वेवर ) के अद्वियोंपर विजय प्राप्त करने के उपलक्ष्यमें पड़ा किया होगा । इस लाटके दिपसमें एक कहावत प्रसिद्ध है। एक समय घारामें राक्षसके आकार की एक तेजिन रहती य 1 उसका नाम गगझी या गांगी थी के पास एक विशा तुला •भी । यह छाट उसी सुझाका उंदा थी और इसके पास पड़े हुए बड़े बड़े पत्थर उसके वजन–टचे । घडू नालछामें रहती थी । कहते हैं, -धारा और नछाकै बीचकी पहाड़ी, उसका ॐग झाने से मिरी हुई रेतसे यनी थी। इससे यह लिन-टेक होता है। इसमें यह कहाश्त चढ़ी है कि कहीं राजा भोज और कहाँ गॉगली वैलिन ” जिसका अर्थ आज काळ लोग पढ़ रहे हैं कि येयपि तेकिन इतनी चिशट शुरचाशी यी, तपाई मौन से रानी यह बराबरी ने कर सकती थी। १९७