पृष्ठ:भारत के प्राचीन राजवंश.pdf/१७५

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मारतके प्राचीन राजयश उनुयादित्यने अपने नाम उदयपुर नगर (ग्यालेयरमें } वाया। यहाँ मैली हुई प्रशस्तिको हम अनेक बार उल्लेख छर चुके हैं । इस प्रवास इक्कीसवें कमें लिखा है कि मोजके पॐ उत्पन्न हुई अराजताको युवाकर उदयादित्य राज्यासन पर गंवा । इस प्रशक्तिसे इस राजाकका हौं वर्णन ज्ञात होता है। क्पा तेईसवें के प्रारम्भमें ही प्रथम शिला समाप्त हो गई है। उसके बाद दूसरी फिली मिली ही नहीं 1 अतएव पूरी प्रशस्त देखने में नहीं आई। | इस राजाने अपने बसाये हुए उदयपुर नगरमें एक धिमन्दिर वन माया, वह अबतक विद्यमान है । इसमें अनेक परमार-रागा | प्रशास्तयाँ हैं। उनमें से मस्तियों का सम्बन्ध इस राना है। उनसे पता लगता है । यह मन्दिर वि० स० ११ १६ में बनने लग ग्रा और वि० स ११६५७ में बनकर तैयार हुआ था । इन प्रशस्तियों पह" ती वि० स० १११६ ( शक सः ९८१ ) की है और दुसरी वि० सं० ११३७ की। ये दोनों प्रशस्तियाँ प्रकाशित हो चुकी है। परन्तु उदमादित्य समयकी एक प्रशस्ति इशायद अबतक ही नहीं प्रकाfत हुई । अतएव उप्ती हम हॉपर उद्धत करते है । यह अगस्त झालरापाटनके दीवान साहयक कोपर राजी हुई है । प्रशस्तिकी नकल । ( १ ) ॐ नम शिवाय t सुबत् ११४३ येनस शु३ १०, अ(२) येह श्रमदैयादित्य कल्याणविनयराज्ये । - (3) टिकावर ( ये } पदूफिर्केपालसुनपाल-भन्न [३] ( १ ) = Trnd., Pal IF 35 (१) Jum Dung , ad, Tol II, P 19 () Icd Aot, Vol IIP 8 (v) WRIT अमन चंगाल एमाः मम जनरल बिन्द !", न । रान् । पर १ १ : ३।१५created by 'B B ho (६) Tead देर । (५) = Pal पट्टान्न 1{१) J4cud पट्टझिनु । १३