पृष्ठ:भारत के प्राचीन राजवंश.pdf/१८२

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भालयेके परमार। होती है। क्योंकि फूली पुन्न छावा, सिराज पुर्वज नाका समकालीन यो । मूलराजने महार पर जो घाई की थी उसमें गहरेपुकी सहायताके लिए लाखा आया था और मूलराजके द्वारा यह मारा गया था। ई सिद्धराजके समय कच्छका राजा हा हो तो यह ज्ञाम जाड़ाय पुत्र ( लारवा जाहाणी ) होना चाहिए था। इसी तरह सिद्धराजकी १८ घर्पत सेवा के जगदेशके लौटने | तर्फ उदयादित्यको जीवित रहना भी कल्पित ही जान पड़ता है। | वैयक वि० सं० ११५०, पॉप ऋण ३( गुजरा अमान्त मास , सिद्धजि गद्दीपर बैं । इसके बाद १८ वर्षातक जगदेब जसकी सेवामें रहा । इस हिसावले उसके धारा काटने का समय वि० सं० ११६८ के नाद आता है । परन्तु इसके पूर्व ही उदयादित्य मर चुका था। इस प्रमाण उसके उत्तराचिंकारी लक्ष्मीदेबके छोटे भाई और उत्तराधिकारी नवमके ० ११६१ के शिलालेख मिलता है । उक्त संबत वहीं मालवेको राजा था । | प्रवन्म-चिन्तीमागमें उसका बृचान्त इस तरह लिया हैः– जगदेव नामक क्षत्रिय सिद्धराज जयसिंहकी समामें था । वह दानी, उदार और वीर था । जयसिंह उसका बहुत सत्कार करता था । फुन्तलदेशकै राजा परमन उसके गुपका प्रेशैसा सुन कर उसे अपने पास युवया । जिस समय द्वारपालने जगदेव पहुँचनेको विवर रीना दी, उस समय के दरबारमें एक वैश्या पुष्प-चलन नामका एक प्रकारका पत्र । पहने नग्न नाच रही थी। वह जमदेयका आना सुनते ही कपड़े पहन कर बंट गई । जगदेव वहाँ पहुंचने पर राजाने उसफो बहुत सम्मान किंया और एक छात्र की कीमत दो वच्च उसे मेंट दिने। इसके बाद रामाने इस वैपाये नाचनेही आज्ञा दीं । वेश्याने निवेइन किया कि अगचैव, जो कि जगतम एकही पुरुष मिना जाता है, इस जगहू उपस्थित