पृष्ठ:भारत के प्राचीन राजवंश.pdf/१८५

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भारतके प्राचीन राजवंश लिया हुआ है । इसलिए इस लेसमें उसकी अनेक 'चाइयोंढा उल्लेख है; परन्तु विपु पर किये गये हमले और तुरॉके साथदाली छडाईके सिवा इसकी और सच बातें कल्पित ही प्रतीत होती हैं। उस समय शायद त्रिपुरीका रजा कलचुरी यश.कर्णदेव था। १३ नरधर्मदेव । यह सपने बड़े भाई लक्ष्मदेवका उत्तराधिकारी हुमा । त्रिदा और दानमें इसकी तुलना मनसे $ जाती थी। इसी रचित अनेक प्रास्तियाँ मिली हैं। उनसे इसकी थिइचाका प्रमाण मिलता है। नागपुरको प्रशस्ति इस रची हुई है। यह बात उसके दुइयनों योद्धचे प्रकट होती है । जिए: तेन त्वयं झलाने.यातनुचिदिसम् । भ्रॉमाघरवागारमार्च ॥ [ ५६ ] पत्न रवदिने अपनी बनाई हुई अनेक प्रशस्तियोंसे भिन पए देवमन्दिर श्रील्मघर द्वारा बनवाया । इस प्रकृतिका रचनाकाल चि० सं० १ १६१ ( ३० स० ११०४-५) है। इनमें महाकालके मन्दिरमें एन्छ ट्रेमका कुछ अंश मिला है । बहू मी इसका धनाया हुआ मालूम होता है । यह कैंपसण्ट अब तक नहीं, प्रकाशित हुआ । धारामें मनाळा स्तम्भ पर जो ले है वह, भीर इन्दौर-राज्य के सरगोन परगने 'उन' में एक दीवार पर ये टेस ३ वह भी, इसकी रचना है। (1) पुग्दर जग का म्यप्रापालने व्यापार र प्रयाय नमः । नी! मैन मनुग्थ न दा ने स्वत: धंगा से क्र्धन सभा ने मैर; 1 [३५] | -Ep Tad , To1 1.4, F 18 १