पृष्ठ:भारत के प्राचीन राजवंश.pdf/१८६

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मावेके परमार। भौजशाला स्तम्भ पर नागबन्धमें जो व्याकरण की फारिकायें तुदी हैं उनके नीचे श्लोक भी हैं। उनका आशय क्रमशः इस प्रकार है: (१) पपई रक्षके लिए शैव उद्यादित्य और नवमके से; सदा उद्यत रहते थे। ( यहीं पर ‘वर्णी' शब्दके दो अर्थ होते हैं। एक ब्राह्मण, क्षय, वैश्य और शूद्र ये चार वर्ण; दूसरा क, से आदि अक्षर 1) (२) उदयादित्यको वर्णमय सर्पाकार पड़ विद्वानों और राजा$। छाती पर शोभत होता था।

  • उन ' गचके नागबन्चके नीचे मी उठेवित दुसरा श्लोक अदा हुआ है । परन्तु महाकालके मन्दिर में प्राप्त हुए उल्लेके टुकड़ेम पूर्वोक्ष दोनों श्लोकझोंके साथ साथ निम्नाकात तीसरा झोंक भी है।

उदयादित्यनामाईवर्षनागपारिका । - --- मी सुटी सुझबन्धुना ।।। इस श्लोकमें शागद सुकवि-बन्धुसे दीत्पर्य नवमीसे हैं । यूके तीनों स्थानॉकै नागपन्धको देख कर अनुमान होता है कि इनका फो न कोई मूद्ध आशय ही रहा होगा । मरयम तरारे भाई जगदेका जिक्र हम पहले कर चुके हैं । अमरुद्धशतककी टीमें अर्जुनवर्भाने भी जगदेगा नाम लिया है। कथाऔमें यह भी लिखा है कि नरवर्माकी गद्दी पर बैठाने के बाद जगदेव उससे मिलने धारामें आया, तया नरदर्गा की तरफ कल्याण चायाँ पर उसने चदाई की । उस युद्ध में चीनृश्यराजको मस्तक काट कर जगवेयने नरेवमके पास भेजा। जगदेयके वर्णनमें लिखा है कि उसने अपना मस्तक अपने ही सुयिते काट कर कालीको दे दिंया या । इस बात के प्रमाण यह कविता - त की जाती है । ११), IT BE A, E; Yad, 7, P. $5.