पृष्ठ:भारत के प्राचीन राजवंश.pdf/१९०

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मालमेकै परमार इस कथाका प्रथमाध जनों द्वारा कल्पना किया गया मालूम होता है । पएफका पुण्य दूसरे को दे दिया जा सकता है, हिन्दू-धर्मशाळा ऐसा ही बिभ्यास हैं । इस विश्वासकी हसी उड़ाने के ल्लिए शायद जानियेंने यह करुपना गहीं हैं। यद्यपि इस विजयका निक माइक्के लेलादिमें नहीं है, तथापि बायकाव्य और चालुक्योंके लेखॉमें इसका हाल है। मालवेके भाका कृयन है कि इस युद्ध में दोनों तरफका बहुत नुकसान हुआ ! यह कथन माय: सत्य प्रतीत होता है । यह कथा याभयकाव्यमें भ प्रायः इसी तरह वर्णन की गई है। अन्तर बहुत थेाहा है। उसमें इतना जियादह लिखा है कि यशोवर्मा पुत्र महाकुमारको जयसिहके भतीजे मसलने मार डाला । जयसिंहको पारंपार कैद करके वह अपहिलवाई ले मया । माळवेका राज्य गुजरात राज्यमें मिला विया गया तथा जैन-धर्मावलम्बी मन्त्री जनचन्द्र बहाँका किंम नियत किया गया । | माङवेसे लटते हुए जयसिंहकी सेनासे मीठोंने युद्ध करके उसे मग देना चाह । परन्तु सन्तुसे उन्हें स्वयं ही हारे पानी पी ।। इड नामक स्थानमें जयसिंहको एक लेख मिळा है जिसमें इस विनया जिज है। उसमें लिखा है $ मालवे और राष्ट्रकै राशा को जयहिनै कैद किया था। सोमेश्वरने अपने सुरोंत्सव नामक व्यके पन्द्रहुई सर्गके बाईसवें | में लिखा है: नीत स्फीतवलोऽपि माछपति फाय दाचित । गपत-उसने ट्रयान मालवे नाङो भी सङ्ग व कर दिया। १५) Ep, Ind, Fa) 1, 256