पृष्ठ:भारत के प्राचीन राजवंश.pdf/१९१

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

________________

भारतके प्राचीन राजब कयामें लिखा है कि बारह वर्ष तक यह युद्ध चलता रहा। इससे प्रतीत होता है कि शायद यह युद्ध नर्मदेवके समय से प्रारम्भ हुआ है। और पशोपमैके समयमै समR 1 | ऐसा भी लिन मिलता है कि जयसिने यह प्रतिज्ञाकी थी कि में अपनी तलंवारकामियान मालवेके राके चमडेका चनाऊँगा । परन्तु मन्त्रीको समझाने केवल उसके पैरकी एङ्गीका भोडासा चमड़ा काटकर । ही उसने सन्तोंघ किया । ख्यातॉर्म दिखा है कि माझा राजा के धन, जयसिंहकी आज्ञासे, बट्ट वैदर्ता के साथ, पर गया था । दण्ड हॅकर उसे धो देनेक प्रर्थना की जानेपर जयसिंहने ऐसा करनेसे इनकार कर दिया था। इस विजय बाद जयहिने अयम्तीनाथा किसान शरण यह था, जो कुछ दानपॉमें लय मिलता है। , यह विजय मन्चकै प्रभाव से बयासहूने प्राप्त की थी । मन्त्री मसे यशवमने भी जयसिंहका सामना करने हस किया था । सरपोत्सव-काव्य एक कसे यह यान प्रकट होती हैं । खेए घाराधीशपुरेभसा चिनुचेंगर नौक्यासिल क्रियालित सदरम्यकृतॆ कृत्या किलोत्पादित। मन्येपेस्य तपस्य अनिता तब त मान्त्रिक ग्रा राहूल्य दाँतसमय ३५ प्रयाता कचि ॥ १० ॥ अर्थात-चैलुक्यराज अधिकृत जपने राजा पृथ्वीको देस झर उसे मारनै धायक रजाके गुस्ने मन्बीसै एक या पैदा की । परन्तु महू कृत्या चालुक्याण गुरु मन्त्राँके प्रभावको गर्म उत्पन्न करनेवालेहीको मार कर गायब हो गई । । माळवेकी बस विजयनै चन्देलकी राजधानी जेजाकभुक्ति (जेनानुति) का भी राहा साफ कर दिया। इससे वहाँकै चन्देल राजा मनवघर १८