पृष्ठ:भारत के प्राचीन राजवंश.pdf/१९२

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मालवेके परमार। भी जयसिंहने चढ़ाई की। यह जेजाकमुक्ति आजकल बुंदेलपण्ड वए चाता है । इन विनयले जयसिहको इतना गर्व हो गया कि उसने एक | नवीन संवन चलानेकी कोशि की ।। | जयसिंहके उत्तराधिकारी कुमारपाई ५ ग्वायर ) के लेवलं भी कुछ काल तक मालवे पर और अजयपाल के उदयपुर गुजरातवालाका अधिकार रहना अट होता है । परन्तु अन्तमें अजमेर चौहान राजाकी सहायतासे कैसे निकाल कर अपने राज्यका कुछ हिस्सा यशोदमन किंर प्राप्त कर लिया। उस समय जयसिंह और यशोवर्माके बीच मेल हो गया था। वि० ० ११९९(६० स. ११४२) में जयसिंह मर गया । इसके कुछ ही काल बाद यशोवर्माका भी देहान्त हो गया । अग तक यशावरमले दो दानपत्र मिले हैं । एक वि० सं० ११९१ ३० स० ११३५), कार्तिक सुदी अष्टमीका है। यह नरम -सयत श्राद्कै दिन यशोवर्मा द्वारा दिया गया था। इसमें अपस्थिङ इणि धनपालको बड़ौद गाँव देने कि है । वि० स० १२००, आवण सुदी पूर्णिमा के दिन, चन्द्रग्रहण पर्व पर, इसी दामको दुबारा मजबूत करने के लिए महाकुमार लक्ष्मीदर्गाने नर्शन ताम्रपत्र लिखा दिया। अनुमान है }ि ११९१, फावई सुदी अष्टमीको, नरदमा प्रथम सांवत्सरिक आइ हुआ होगा, क्योंकि विशेष कर ऐसे महादान पथम सांवत्सरिके आर पर ही इिये जाते हैं । यद्यपि ताम्रपत्रमें इसका जिक्र नहीं है, तथापि सुंभव है कि वि० सं० ११९०, फातिम मुदी अष्टमीको हो, नरदमका देहान्त हुआ होगा। ( Ind. Ast, Vol XVIII, P. 313. < DI, 347,(1) Ju4, 4pt. Ind. Ant. Yo 21. FIF Pl, (r) Ipu, Ant., 3 , p. 351, १