पृष्ठ:भारत के प्राचीन राजवंश.pdf/१९७

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मारतकै भाचीन राजा अनुमानसे शायद इसी समय वि० १० ११९९ के आसपास होगा । इसके बाद वि० स० १२००० स० ११५३) श्रावणशक्ल पूर्गिमाका, महाकुमार ली गर्नाका, दान पर मिला है। इसमें अपने पिता योमके दि. १० ११९१ में वैये हुए नई इधकृते हैं । इसमें यह मी अनुमान होता है कि सुम्मवत वि० स० १२०० के पूर्व ही जयते पज्य छीना गया होगा। इस दान में दवनि अपने महाराजाधिराजके बदले महाकुमार सिहा है । इस लिए शायई उस मग तक जयवर्मा जीवित रहा होगा । परन्तु वह अन्यत्रमा दम रहा हो तो आश्चर्य नहीं । | वि० स० १२३६ ( ई० स० १ १७९) वैशाख़-मुक्का पूर्णिमाका. टावमा के पुत्र एन्द्रिका, दानपत्र भी मिला है' । तथ। उसके बाद वि० स० १२५६ ( ई० ११९९) वैशाः- पूमिका, हरिश्चन्द्र के पुत्र उद्यम दानपत्र मिला है । | "योगमका उचैति ताम्रपत्र सारा दिया गया था, जयवर्मा का मानपुर से जो शायद बंडदानी कहलाता है । इमबर्माको राजसमनचे दिया गया था, जो अब रायन कहता है । वह भोपाल ज्यमें है। हरिन्द्रका पिलिगन्नगर ( भोपाल राज्य ) में दिया गया या। यह नर्मदाके उत्तरमें है । उद्यत्रमा वाट्टापट्ट या गिन्नुरगइसे दिया गया था । नर्मदा इन्चर, इसे नामका एक छोटासा फिलः भाषा-ज्यमें है ।। |६४ मालूम होता है कि 'क' झाका अधिकार मिटता और नर्मदी चि और ' व 'शस्पिाका झाधकार धारा चारों तरफ या । | (1) Jnd Ant, FeL XIX, I () , E A , 21T, B (३} Tad, Ans,Test, , , *54. १५३