पृष्ठ:भारत के प्राचीन राजवंश.pdf/१९८

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• मालचे परमार। '३' शाखाके राजा । १५-अजयम | | इसने अपने भाई जयवर्माने राज्य छीना और अपने यंशी नई | 'ख' शाखा कालाई । यह 'स' मा लक्ष्मीदर्माको प्रारम्भ हुई * * ' शाखासे चराचर लड़ती झगड़ती रहीं । उस समय घापर इ ' छ शायका अधिकार था 1 इसलिये ६६ वय मह्वकी थी । १६-विन्ध्यवर्मा । यह् जयंवर्धाका पुत्र या । अर्जुनर्भके ताम्रपत्र में यह 'नारमून्य लिखा गया है । इसने गुजरातवा अधिपत्य को मालवेरी हटाना चाहा । ई०सं० ११६ में गुजरातका प्रज्ञा जयपाल भर गया। उसके मरते ही गुजरातवालाका अधिकार मी मालवेंपर झिायल हो गया। इससे मालवेके कुछ भाग पर परमाने कर दखल जमा लिया। परन्तु यशोवर्मकै समयसे ही वे सामन्तक सरह रहने लगे । मालवे पर पूरी प्रभुता इन्हें न प्राप्त हो सकी । | सुरथोत्सन नामक काममें सोमेश्वरने निन्ध्यन और गुमराहचालक वीच वाली काङ्गाईका वर्णन किया है। उसमें लिखा है %ि लड़के सेनापतिने परमारो। सेनाको भगा दिया था गोगस्थान नामक गाँव बरवाइ फेर दियो । वियवम भी बियाका मा अनुरागी का 1 उसके मन्त्रीको नाम हिए या । यह विरुण विक्रमासूदेवचारतके कर्ता, काश्मीरकै १३ कधिसे, भित्र था । अर्जुनबर्मा और देवपाल्वेषकै समय नफ यह इसी पद पर रहा। मौहमें मिले हुए विन्ध्यवर्मा के लेखमें विद्या के %ि लिया है: