पृष्ठ:भारत के प्राचीन राजवंश.pdf/२०३

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भारतके प्राचीन राजदशा मान्दुर था ( मह मन्दिर जब छमार मां मसजिदमें परिवर्तित हो गया है)। वहीं पर प्रथम बार यह 7ठ खेला गया था ! प्रवक्त जयसिह गुजरता है। यह होगा । मीमदैवसे इसने अनलियाका राज्य छीन लिया था। परन्तु अनुमान होता है कि कुछ समय बाद इसे हटा कर उगनहिलाहे पर ममने अपना अधिकार कर लिया था। वि० स० १२८० फा जयसि का एक तोपत्र मेला । उसमें उसका नाम जपतसिंह लिया है, जो जयसिंह नामका दूसरा रूप है। | प्रबन्धचिन्तामणिम् यि हैं कि भीमदेव समयम अर्जुनमनै गुजरातो बरबाद किया था। परन्तु अर्जुनवर्मक वि०स० १९७९ तफके नामपञोंने इस टिनाका उद्भेस नहीं है । इससे शायद यई घटना वि०स० १२६२ के बाद हुई होगी । | वि०स० १२७५ का १४ लेस देवपाल्देवका मिला है । अतएव अर्जुनबमका देहान्त वि०स० १२७२ र १३७५ के वय किसी समय हुआ होगा । इसने अमरुशतक पर रसिक-मनीवनी नामकी दीका मनाई , जो क्वाथ्यमालामें छप चुकी हैं। १९-देवपालदेव । यद् अर्जुनवका उत्तराधिका हुआ । इस नामके साथ ये विपण पाये जाते हैं --*समस्त प्रशस्तपैतसमधिगतपञ्चमहाशब्दङ्किार विराजमान। इनसे प्रतीत होता कि इसका सम्बन्ध महाकुमार मी य¥यशरो मा, नकि जनवमसि । क्योंकि ये विशेषण इन्हीं महाके माझे नामों साय लूगे मिलते हैं। इससे यह भी अनुमान होता है । छायद भर्जुनवर्मा मृत्युरामसमें कोई पुन न या इसलिए उसके मृत्यु १३)PEd Ant, You , P 196