पृष्ठ:भारत के प्राचीन राजवंश.pdf/२०४

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

________________

माबेकै परमार। साथ ही 'स' शाखाकी भी समाप्ति हो गई और मालवे के राज्यपर 'क' शाखापालक अधिकार हो गया । मालवा-राज्यके मालिक होनः भाद् वैवपालदेवने परमभट्टारक-महाराजाधिराज परमेश्वर" आदि स्वतन्त्र राना चिंताच धारण किये थे 1 उस समय चार लेस मिले हैं। पहला वि० सं० १९७५ (३० स० १२१८) का, सौद। ग्रामी। दूसरा वि० सं० १२८६ ( ई० स० १२२९) को । तीसरा वि० सं० १९८२ ( ई० स० १२३२) का। में दोनों उदयपुर १ गवालियर ) से मिले हैं। चौथा वि सं १९८२ { ई० स० १२३५) का एक ताम्रपत्र हैं। यह ताम्रपत्र लिहमें मान्धाता गांवमें ना है। यह माहिष्मती नगरी वैिया गया था । इस गाँवको अव महेश्वर कहते हैं । यह गाँव इन्दोर-राज्य है। देवपालदेव राज्य-समय अर्थात वि० सं० १२१२ (ई०सं० १२३५) आशाघरने निषeस्मृति नामक ग्रन्थ समाप्त किया तथा वि० सं० १३०० ( ई० सं० १२५३) में जयतुझे राज्य-समयमें धममृतक टीका हिरी । इससे प्रतीत होता है कि वि० सं० १२९२ र १३०० ॐ मंच किसी समय वेदपालदेवी मृत्यु हुई होगी । इसी कांवके बनाये जिन-यज्ञकरुप नामक पुस्तकृमें ये झोक है: विश्वयंमपंचाशीतद्वादशवसेती ।। आश्विनमितान्त्यदेव साहुरमाइपरल्यम्य । श्रीदेवपालनुपः प्रमालसरस्य सौरानै। नलझरे सो अन्योऽयं नैमिनाचैत्य३ ॥ इनसे पाया जाता है कि वि० सं० १२८५, आश्विन शुक्ला पामा दिन, नल #उपुरमें, यह पुस्तक समाप्त हुई। उस समय देवपाल रेजिड़ था, भिसी दूसरा नाम समिल पा । " १) Iril, Ant, Vol X*, , .1 (३) Ind, Att, v x, 85 १३) Tal, Act, 1.55 E3 (v) Ep, rel, Vol IS, P, 103,