पृष्ठ:भारत के प्राचीन राजवंश.pdf/२०८

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मालवेके परमार। | चहुबोनाने मुसलम्सनकी अधीनता अनुचित समझा । इससे ३ पृथ्वीराज चौत गोविन्दराजकी अध्यक्षतामें रणथंभोर पले गये । ३. स. १३०१ में उसे भी मुसलमानों ने न लिया 1 तारीख-ए-फीरोजाहीकै लेरानुसार हम्मीर, जो उस समय रणथमीर। स्वामी या, अल्लाउद्दीन रिबलजीने मार ट्राली । ऐसा भी कहा जाता है कि मालवे के राजा चहुबान वाग्मट मारनेकी अनुमति दी गई थी। परन्तु बाग्मट बचकर निकल गया । यथापि यह स्पष्टतय नहर कह सकते कि इस समय माईको ना फोन या, तथाघि वह राजा जयसिंह ( तृतीय ) हैं, तो आश्चर्य नहूँ | इसका बदला लेनेको ही शायर, कुछ दर्य वाद, हुम्भीरन मलिबेपर चढ़ाई की होगी ! | हमीर चहवान वाग्भटका घेता या । वि. स. १३३९ (३० स० १२८२ ) में यह राज्यपर वैा । इसने अनेक हम किंथें । इसके द्वारा धारण किये गये हुमा वर्णन दिन इस प्रकार या है-* उस समय वहाँपर कवियाका अन्नपदाता भोज ( दुसरा) राज्य करता था । उसको जीतकर हमार इज्जैनकी तरफ चला। वहैं। पहुँचकर उसमें महाकाके दर्शन किये । फिर चा मह चिंटूट ( चित्तौड़ ) फी फ रवाना हुशा 1 फर आयूकी तरफ जाते हुए मैदपाङ ( मेवाड़) को उसने दवाव किया । ममाप वाह वेदानुयायी र, तथापि पर पहुँचकर उसने पहाडीपर प्रतिष्ठित जनमान्दर दर्शन किये । यमदेव और वस्तुपाल मन्दिा सुन्दरताकी दैरू कर उसके चितमें बड़ा आश्चर्य हुआ। उसने अपनेवर महादेघड़े में। दन ये । सदनन्तर के परमार-राजाको अपने अधीन कर; वह हमर बर्धमनिपुरकी तरफ चरा । वहाँ पहुँचकर उसने एय नमो ट्टा ।”