पृष्ठ:भारत के प्राचीन राजवंश.pdf/२०९

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भारतके प्राचीन राजवा म्झारका समय इ. स. १९८३ र १३०० के नाँच ' है । उस कामय मायेका र भौज (गुरु) था, ऐसी हम्मीर महाकपिळे नत्र सर्गके इन से प्रतीत होता है । धि - इतेः मदलगत्मादाय परम् । चौ घार्ग धरासार व राशिमोनमः ॥ १७ ।। परमारान्वयौ भन्ने मात्र इवार । तनाम्भौमवर्नेन रात म्टाझिनदीमत ।। १८ ॥ अन्य प्रतापका सुनुइ ( दृमीर ) भरकर किलेस कर | सफर धारार्क तरफ चला । वहाँ पहुँचर उसने परमार-जा भोजको, जो कि ऋचन प्रसिद्ध मोजक समाने या, कमर की तरहसे झुरझा दिया। अत्राशा वा कुनै जो घारामं है उसके रेसका उल्लेख हुन | पर्ने । कर चुके हैं । उसमें उस फर्काकी करामतों के मासे मोनका मुसलमान बर्म अहंकार करना सिखा है । यही कथा गुल्वस्ते अन्न नीम की एह छोटीसी पुस्तकों भी लिंङ्गी है । परन्तु इस वातका प्रयम भाजके समयमं होना तो दुस्वम्भव ही नहीं, बिल्कुल अन्नम्मन ही है। माकि उस समय माटम मुसल्माना कुछ भी दौर-दौरा न मा, जिनके मयसे भाज जसा गिद्धान और प्रतापी राजा मी मुसमान हो जाता । अब रहा दिसाय मौन । सो सिंदा शाह-चाल लेंस और गुलस्त अबक किसी र फार तवारीखों का मुसलमान होना नई लिंखा । हिन ८५९ ( ई० सृ० १४५२ ) का देसी हुआ-- नैसै शाह-भट्ठाला भी दूधेरै भोजकै समयसै देई सौ वर्षे बाद है 1 त , सम्मा है, कन्नी मरिमा बजाने सिने यह कल्पित हुए पीछेसे मी दिया होगा । (1) 5 R A A, Ya1 x, p 35 १६६