पृष्ठ:भारत के प्राचीन राजवंश.pdf/२१

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पगार फतह किया था । परन्तु इस पर भी मन्तीय नादि कारण उसने कामरूप, भासाम और नियत पर भी चडाद पर दी, जहाँस हारपर रौटते हुए हिजरी सन् ६.० (वि. स. १०.१)में देवकोटमें यह अपने ही एक अमीर अ मर दान हाधये मारा गया। इन सनदार इतिहास, वारा वादविवादका विषय लवमनसन स्वन है। पहरे तो मह पात् वेताल और बिहारमें चरता था पर अब सिर्फ मिभिगमें ही भलमा है । अस्वरनामेसे जाना जाता है कि गला अपवरने अप अपना सन् ' इलाही मन्' के नामसे चराया था शव सो चारते एक बहुत बड़ा परमान् निशा था । उसमें दिया है कि हिंदुस्तानमें रद तरह सवत् दलहै । उनमे एक ससम्मान सबत् यगासमें चरता है और यहाके राजा शवमनसेनदा चलाया हुआ है जिसा अपतन हितरी सन् ९९१ विकासपत् १६४१ और शालिवाहन शव गवत् १५.४ में ४६५ वश झाले है। इससे जाना जाता है कि लखमनसेन रावत् विक्रमसयत् ११४६ और पाक राबत् १०४१ में वा था । परन्तु वकीपुरकी द्विजपनिकामें इगो विस्त शक संवत् १.२८ में लसमनसनका बचार राजसिहासन पर बैठकर अपना सवत् चरणमा लिया है। इन दोगान १३ अरपका फो पटता है क्योकिल स. ११८ मि . ११.३ में या । अवसरनामेये लेखमें इस समय बि. स. १९७७ में लक्षमनगेन सवा ८०१ और द्विजपत्रिका के हिलावरी ८१४ होता है । न मालम निथलाई पचानोंमें इसवी सहा मंग्या आनर क्या । आरा नागराप्रचारिणीपनिकाके चंथ घरातीसरी मात्रामें विद्यापति उत्स्फ शारान गाँच विस्पाका दानपत्र या है। उसके गचभागने भन्में तो रमणलेन सवत् २९३ सादन मुदी ७ गु शुग है। पर मद्यविभाग को नाचे सीन सदन इस तौरसे मुद्दे है - मन, ८.४ नगर १४५५ शके १३९ ये तनों मवन् जर चाया लभ्मगसेन राजन् मै भारों ही सगत् मल है, मोवि य गणितम भापमन मेर नहीं साते । यदि मयन् १४५५ और माचे.