पृष्ठ:भारत के प्राचीन राजवंश.pdf/२१३

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भारतके प्राधीन शिवंश उस चाकी चोवीसी पौंड में उनका राज्य मुसलमानोंने छीन छिया । इस में मुझ और भौज (प्रथम) ये वो राना बड़े प्रतापी, विन्पात और पानरान हुए । इनफे बनवाये हुए अनेक स्थानोंके हर अदतक उनके नाम मुहको तीपर धारण किये ससारमें अपने बनवाने बालों का पश फैला रहे हैं । घारा, माटू और उदयपुर गवालियर) में परमार द्वारा बनाये गये मन्दिर गादिङ उक्त पंकी प्रसिद्ध यादगार हैं ! | परमारोंढ़ी उन्नतिकै समय उनका रिज्य भिसासे गुजरातकी सरहद तक र मन्दसौरके उत्तर दक्षिणमें तापी तक था । इस एज्मि मण्डलेश्वर, पट्टफिल अादिक कई अधिकारी होते थे । राजाको राजकार्यमें सलाह देनेवाला एक सान्धि विहिक (24intskur of Teaco = War) होता था। यह पद ब्राह्मणीहीको मिलता था। धिराजके समय तक उन है। राजघानी थी। परन्तु पीसे भोजने मारा नगरीको राजधानी बनाया 1 इसी कारण मोजका खिताब धारेश्वर इअ । जसका दूसरा लिंचि मविचबत मी यो । परप्तारका मामूली विताब_* परमभट्टारक महाराजाधिराम-परमेश्वर ” लिया मिलता है। | इस मशकै राना अब ये । परन्तु विद्वान् होने के कारण जैन अश्कि अन्य धम्मसे भी उन्हें ई म या । बहुधा में जैन विद्वानोंक शाखायें सुना करते थे। परमार की मुहमें मरुद्ध और सर्पका चिंह रहता थी । परमारों अनेक साम्रपत्र मिले हैं। उनसे इनकी दानशीलताका पत्र उता है । भविष्यमै और मैं दानपत्रों atदिके मिलनेकी अश है । ({} Ep ad, ! ।। १७