पृष्ठ:भारत के प्राचीन राजवंश.pdf/२२३

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मारतकै भाचीन राजवंश अयापदंविदामाधम नामात दो। विक्राफिजालानटिले जातवेदास ।। ६ ।। सत क्षेप्यासकौदण्ड: किटीकाशनाङ्गद । बन्नगामाात मोऽपि सईमध्यच पुमान् ॥ ६८।। परमार वंश घर्जनम् । परनार क्षिप्रापन्न मुनेनमें चार्थवत् । मीलितान्मनृपच्छमातपन च भुतले ।। ७१ ।। अर्याद-विश्वामिने जिव समय कृपहाडपर बसिसके श्रमसे य तुरा ही, उस समय कुछ हुए बसिने अपने भन्नघलस अभिकुण्डमैसे एक पुरुप उत्पन्न किया । इसने वाधके शत्रुओंका नाश कर डाला। इसे प्रसन्न होनर वसिष्ठने इसका नाम परमार रा । चम्नमें 'पर' शो और *मार' मारनेवाले कहते हैं। इस वंशके लेखों में इन उत्पाने इसी मारते दिल्ली है । विक्रम सबत् १३४४ का एक लेख पाटनारायण मन्दिरसे मिला है। इसमें इस बाकी इत्याचे विघपमें निम्नलिवित झोक लिने हैं - | जयद् निसिधैं मैंन्यमान ग्वान् । मुनि गुग्गुरपनौसपुर्वैः ।। बिल्झदनगम वारी ।। मच मुटमैके युवान्पन्न ५३ ॥ ३ ।। नीतधने पनिजेथेन मुनि गोत्र परमपुज्ञा । तस्मै यदायुद्धत पूरेभान न धौमरज म हारे नाग्न। ।। ४ ।। आपत्-अनूपर्वत पर वशिष्ठने अपने मन्त्रों द्वारा [पुण्हमें , बरफको उत्तम [कया । नत्र चहू शत्रुओं के मारा कि गायक। (१) पा है मन खिन ६ (Yel XLV, A DI !, 3f43 1985 में पेश है।