पृष्ठ:भारत के प्राचीन राजवंश.pdf/२२४

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परमार-चशी उत्पात् । ले आया तब मुन्ने प्रसन्न होकर उसकी जातिका नाम परमार और उसका नाम घोमराज़ रखा। आडूपर चिलेश्वर मन्दिरम एक लेख लगा है। यह अमल | छपा नहीं है। इसमें लिखा है: साथ मैनाबरणय नुतण्डे निकुडापुरुष पुराभवत् । मना मुनीन्द्र परमारणक्षम स म्यासे परमारसंक्षया ॥ ११ ॥ । अर्थात्-पन्न करते हुए वसिष्टके अग्निकुण्डसे एक पुरुष उत्पन्न हुने । | उस पर अर्यात वृद्धि मारनेगें समर्थ देखा ने उसका नाम | परमार रख दिया। उपर्युक्त वसई और विश्वामिनी लडाईका दर्णन वाल्मीकि रामा| यामें भी है। परन्तु उसमें अग्निकुण्डसे उत्पन्न होने के स्थानपर नन्दिन गोदारा मनुष्यों की उत्पन्न होना और साथ ही उन मनुष्योंका शङ-यवनपुन्ह्व आणि जातियों के म्लेंच्छ होना भी लिखा है। | धनपाल्ने १०७० के करी तिलकमलरी बनाई थी। इसम भी इन उत्ति अमि कुण्ढसे ही लिखी है। | परन्। हुलायुमने अपनी पिङ्गलसूत्रवृत्ति में एक श्लोक उद्दत किंया है

  • प्रद्मप्रसौन प्रनसामन्तचकनुतेर ।

सलमुतकर्पून श्रीमान्नुपधि जयति ॥” इमों • गह्माकुन- 'इम पा अर्थ विचारणीय है । शायद ब्राह्मण घर्ति को युद्धकै क्षत था प्रहार से बचानेवाला देश समझकर ही इस शब्दको प्रयोग किया गया हो । अनेक विद्वानों का मत हैं होग घायण और क्षत्रिय इष्टाही मिश्रित सन्तान थे। अयश ये विधम्। ये थे और ब्राह्मणोंने सस्कार द्वारा शृद्ध इरके इनको क्षत्रिय बन्। क्लिय।। तुपा इसी कारण इनको ‘ब्रह्मक्षत्रीन:' टिस, इनकी पर्चि ये अमिंझुण्डी या बनाई गई । रामायण मी नादनासे उत्पन्न ११