पृष्ठ:भारत के प्राचीन राजवंश.pdf/२४९

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मारत बाथीन राजदंश उसकी यादगारमें वि०सं० ११७६ (६०स० ११ १९=श०सं० १०५१) में इसने, अपने पुन लक्ष्मपसेनके नामका संमत् प्रचलित किया । तिरहुतमें इस संदरका आरम्म मध इङ १ से माना जाता है । इस सवतु सुनके पियों भिन्न भिन्न प्रकार प्रमाण एक दुरेसे विरूद्व मिते है । 3 ये हैं-- | ( क ) तिरहुत राजा शिवसिंदेव दानपनमें लक्ष्मणहेन ७२९६ श्रावण शुझ ७, गुरुवीर, लिंब कर साथ ही--" सुन् ४०१, संवत् १४५५, शाके १३१ " दिया है ।। (a ) र राजेन्द्र लाल मिश्के मतानुसार ई०स० ११०६ (विःसं० ११६३, श०सं० १०३७ ) के जनवरी ( माघशुक्ल १ ) से उसका मरम्म हुआ ।' भङ्गालको इतिहास' नामक पुस्तके लेकि, मुन्। शिवनन्दनसहायका, भी यही मत है। | ( 11 ) मिंयाके पञ्चाङ्गेझे अनुसार कामयसेन-वन्फा आरम्भ शक १०३६ से १८३१ के बीच किं बसे होना सिंह देता है। परन्तु इसे निश्चित समयका ज्ञान नहीं होता। (ध } दुल्फजल लेखानुसार इसे सत्का रम्म शेकस १०४१ म हुआ या। ( ४ ) सुनि-तचामृत नामक सुस्त-ठिावत' पम्तःके अन्तमें लिख मुदतके अनुसार अनुगका पूर्व मते ही पुष्ट होता है । | उपर्युन शिवसिंह लेंस और पशी आदि घर पर दाटर गीतार्नमें गत किया तो मालूम हुआ कि यदि शकसंवत् १०३८ गरि- १, को सिक्का मारFम माना जाय तो पूनि । (१) | . ६ , Vol. , Trai, P 505 (५) Jef sl t la tu F 71 7 (1)*, * ॥ ६ , 7, Marl 1 1 , {1}ind Asli Tol, TY,P 5, ।। fe8