पृष्ठ:भारत के प्राचीन राजवंश.pdf/२५१

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भारतके माचीन राजवंश उन्नति रुक्क गई । परन्तु इनके राज्यही समाहिके साथ ही सोय चोट्स चर्मका लोप और वैदिक घर्मक उन्नतिका प्रारम हो गया तया बभ्रम-वस्था रहित बौद् होग वैदिक धर्मावम्बियॉर्म मिठने लगे। इस समय बल्लाळनने वर्णव्यवस्थाका नया प्रवन्ध किया और अविवार दृाप छाये गये कुलीन ब्राह्मणों का बहुत सन्मान किया । । दालन-चरितमें लिखा है बालसनने एक महान किया। इसमें दारों वर्षों पुष्ट्य निमत्रित ङिये गये 1 बहुतसे मिश्रित वर्षके लोग भी बुलाये गये । भोजन-पान इन्पादिसे योग्यतानुसार उनी सन्मान भी किया गया । उस मुमय, अपनेको वैश्य समझनेवाळे सोनार यनये अपने लिए कोई विशेष गन्ध न देस र सन्तुष्ट हो गये। इस पर कुछ होकर रामाने उन्हें सन्द ( अन्त्यजसे ऊपर के दरवाज़े शुद्र ) में रहने की जमाना दी, जिससे वे लोग वाँसे चले गयँ । तवं पञ्चासेनने जातिमें उनका सुरजी बढ़ा दिपा भी यह माज्ञा ६ ॐ याई फोई दाह्मण इनको पढावे या इनके यहाँ कोई कर्म करावेंगा त देह जतिसे बहिष्कृत कर दिया। जायगा । काय ही उन सोनार-बनियाँ यज्ञोपवीत इनरवा लेने का भी हुक्म दिया । इससे सन्तुष्ट होकर बहुत से बनिये उसके राज्य यार चले गये । परन्तु न बह रहे उनके यज्ञोपत शहरवा दिये गये । उन दिन वहाँ पर बाह्मण लोग सि-दास या व्यापार किया करते थे । २i बानये डनको काया कृ पा करते थे। परन्तु पूर्व क्ति पटना वा उन बनियन नीनगीफो धन देना बन्द र दया । फलतः उनक! म्यापार भी यन्द हो गया ! दध से न मिलने लगे। लोग बड़ा इष्ट नै छ । उसे दूर करनेके लिए बार सेनने आशा दी ॐि आशगे कैघर्न १ नाव घटानेवाड़े और भी मारनैवाने या माद और इर) सोग रार्म नै जायें और उनको ब क र कर, उनके १६