पृष्ठ:भारत के प्राचीन राजवंश.pdf/२५२

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सैन-वंश । हासे जल आदि न पनेकी पुराना रिवाज़ उठा दिपा जाय । इस आज्ञाके निकलने पर उच्च वर्णके लोगने केंवतके साथे परहेज करना ‘छोइ दिया। वर्नाका प्रतिrt-वृद्धिका एक कारण और भी था । वहालसेनका पुन मगसेन अपनी सौतेली माँ से असन्तुष्ट होकर भाग गया था । उस समय इन्हीं कैयने उसका पता लगाने में सहायता दी थी । ये लोग धडे यदुर थे । उत्तरीचङ्गालमें ये लोग बहुत रहते थे 1 इससे उनके उपद्रव व करने का भी सन्देह बना रहता था । परन्तु पू आशा मंचछत होने पर ये लोग नौझके लिए इघर घर बिखर गये । इन्होंने पालवंशी महीपाझो केद किया था ! इहालसेनमें उनके मुवय महेशको महामण्डलेश्वरको उपार्थि । थी और अपने सम्बन्धियों सहिंत उसे दक्षिणघाट ( मण्डलघाट ) भेज दिया था। | कंबही इस पदवृद्धिको देख कर मालिंगों, कुम्भकार और लु ने भी अपनी दरजा वष्ठानेके लिए राजासे प्रार्थना की । इह पर जाने उन्हें भी मुझमें गिनने आशा ६ दी । इररने स्वयं भी अपने एक नाईको ठाकुर बनायो ।” | नार-वनियॐ रापथ किये गये बरतावकै विषयमें भी हिंसा है कि से म माह्मणों का अपमान किया करते थे। उनका मुखिया बल्लालके नु मगघकै पाला राजाका सहायक था । मुखियाने अपनी पुत्रीका विवाह भी पास से किया था। उपर्युक्त पृत्तान्त बाल-चाँरेतझे फती अनन्त-भइने शरमाइतके अन्धले उदृत किया है। यह ग्रन्थ बालसँनके समय में ही बना था। अतः उसका सिर वन झुछ भी हो स¥ता। Fe७