पृष्ठ:भारत के प्राचीन राजवंश.pdf/२५३

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मारतके प्राचीन राजर्व बालसेन अपनी ही इच्छा अनुसार वर्षा-व्यवस्था नियम धन्य करना था । यह भी इससे स्पष्ट प्रतीत होता है। | निन्द-भट्टने यह भी लिखा है कि याचेन वद्ध ( तान्त्रिक चोद ) का अनुयायी था । वह १२ पर्येकी नट्टियों और चाहानियफा पूजन किया करता था । परन्तु जान्तमै बदरिकाश्नम-निवासी एक सायुके उपदेशसे बह शैव हो गया था। उसने यह भी लिखा है कि ग्वाल, तम्बोली, कसेरे, ताँत ( पडे बुननेवाले ) जैली, गन्धा, देर । रङ्गिक ( शइकी चूडियो बनानेवाले ) ये सन सरुद्ध है और राव सोम कायस्थ भेड़ हैं। | संहगरके शाघार पर, अनन्त-गट्टने यह भी लिखा है कि सूर्यमणसे शाक द्वीपमं गिरे हुए मग जाति के लोग ब्राह्मण हैं। | इतिहासवेत्ताका अनुमान है कि ये लोग पक्षले ईरानी तरफ रहते थे। वहाँ ये आचार्यका काम किंया करते थे। वहीं से य वस देशों शाये। में वय में अपने झाक द्वीप-दाकों द्वीप-म्राह्मण कहते हैं । ये फरतज्योतिष विद्वान् ५ । अनुमान है कि मारत फवज्योतिषका प्रचार इन्हीं लोके द्वारा हुआ होगा । ययोंकि दिक ज्योतिएमें फति नहीं है। ५५० ईसवीके नेटकी लिखी हुई एक प्रार्चन संस्कृत-पुस्तक । नेपालमें मिली है । इरामें लिया है माझमान मगानां च रामन्य जागधे काली । । अर्थात् कलियुगमें नहाका और मग लंका दूर दरार हो नायगइससे #िह है कि इन पुस्तक के रचना-काल ! विषम-उत् ६०७ ) में भाग मग अँए गिने नाते में। B) B: A 9 Pro, 1909, JADOST ११) 13. A E Pip, 19) ", । (1) Ilp A B fre, 12, 13,